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बच्चे शरारत न करे, यह किसी तरह संभव नहीं

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शरारत और बच्चे एक दूसरे के पर्यायवाची जैसे हैं। बच्चे हैंं, तो शरारत करेंगे ही। यह सौ फीसदी तय है। बच्चे धमाचौकड़ी न मचाएं, यह उतना ही बड़ा झूठ है जितना यह कहना कि सूरज पश्चिमी से निकलता है। अब अगर कोई रेस्टोरेंट यह कहे कि यहां आने वाले बच्चों ने शरारत की तो सरचार्ज वसूला जाएगा। इस सरचार्ज को नाम दिया जाए बैड पैरेंटिंग चार्ज, तो माता-पिता को कैसा लगेगा। स्वाभाविक है कि भारतीय पैरेंट्स इसे किसी भी रूप में स्वीकार नहीं करेंगे। लेकिन अटलांटा में ऐसा ही हो रहा है।

अटलांटा के ब्लू रिज माउंटेन एरिया में स्थित टोकोआ रिवरसाइड रेस्तरां में शरारती बच्चों के आने पर माता-पिता से बैड पैरेंटिंग चार्ज वसूला जा रहा है। सच कहें, तो बच्चे को शरारत करने से दुनिया के मां-बाप मिलकर भी नहीं रोक सकते हैं। सदियों से बच्चे शरारती रहे हैं। हां, कई बार ये बच्चे शरारत में कुछ ऐसा कर जाते हैं कि उसे समाज या कानून स्वीकार नहीं कर सकता है। लेकिन बच्चों की 99 प्रतिशत शरारतें ऐसी होती हैं जिससे किसी को नुकसान नहीं होता है। सवाल यह है कि बच्चे शरारत क्यों करते हैं? इसका कारण यह है कि बच्चों में ऊर्जा ज्यादा होती है। इस ऊर्जा को खर्च करने के लिए बच्चे कुछ न कुछ करते रहते हैं।

दौड़ना, खेलना, कूदना, आपस में मारपीट करना, यह सब कुछ स्वाभाविक है। अगर आपने ध्यान दिया हो, तो पता होगा कि जब बच्चे पेट के बल घिसटने लगते हैं या फिर चलना शुरू करते हैं, तो फिर वे जब तक जागते हैं, कुछ न कुछ करते रहते हैं। इन बच्चों को कभी थकान भी नहीं महसूस होती है। इनकी अपनी ऊर्जा को व्यय करने का सबसे अच्छा और उचित तरीका इनकी चपलता में ही छिपा है। मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि जो बच्चा जितना अधिक कुशाग्र होता है, वह उतना ही चपल और शरारती होगा। उसके दिमाग में कुछ न कुछ चलता रहता है। वह शरारत के नए-नए तरीके सोचता रहता है। धमाचौकड़ी मचाता रहता है। जो बच्चा मंदबुद्धि या कम दिमाग का होता है, वह ज्यादातर चुप ही रहता है। वह शरारत भी नहीं करता है। ऐसे बच्चे पढ़ाई-लिखाई में औसत दर्जे के साबित होते हैं। अक्सर देखा गया है कि जो बच्चे चपल या शरारती होते हैं, वे पढ़ाई लिखाई में भी अच्छे होते हैं।

बस, ऐसे बच्चों को नकारात्मक सोचने या बुरे काम करने से रोकने की जरूरत है। उनको यह सिखाने की जरूरत है कि वे अपने दिमाग का सकारात्मक उपयोग कैसे करें। जब बच्चे की शरारत सीमाओं का अतिक्रमण करने लगे यानी उसकी शरारतों से किसी को नुकसान पहुंचने की आशंका पैदा हो जाए, तो उसको ऐसे कामों में उलझाने की जरूरत है जिससे उसे शरारत करने का समय ही नहीं मिले। बच्चों में समाहित ऊर्जा का उपयोग कैसे किया जाए, यह उसके अभिभावकों पर निर्भर करता है।

कुछ अभिभावक बस इसी कला में पारंगत नहीं होते हैं, तो उसका खामियाजा आगे चलकर समाज, मां-बाप और खुद बच्चा उठाता है। मां-बाप या अभिभावकों को यही सीखने की जररूत है। लेकिन यदि कोई यह कहे कि बच्चे शरारत करें ही नहीं, तो यह असंभव बात होगी। बच्चे सदियों से शरारत करते आए हैं, भविष्य में भी करते रहेंगे। बस, जरूरत है, तो उनकी शरारतों को नियंत्रित करने की।

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