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कोरोना काल में Oxygen को तरसने के बाद भी पर्यावरण से खिलवाड़?

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पर्यावरण का महत्व शहर में कागजों तक ही सीमित हो चुका है। पर्यावरण दिवस पर संबंधित विभाग और संस्थाएं संरक्षण के बड़े बड़े दावें तो करती है लेकिन वास्तव में पर्यावरण की तरफ चंद समाज सेवियों को छोड़कर कोई ध्यान देने की जरूरत महसूस नहीं कर रहा है। नगर निगम की लापरवाही के कारण शहर के ज्यादातर पार्क उजड़ चुके हैं। वहीं शहर की तमाम ग्रीनबेल्ट या तो उजड़ी हुई हैं या फिर उन पर लोगों ने कब्जे किये हुए हैं। जबकि ग्रीनबेल्टों को कब्जों से मुक्त करवा कर उन्हें हरा भरा करने के आदेश हाईकोर्ट भी दे चुका है। लेकिन निगम के अधिकारियों ने हाईकोर्ट के आदेशों को भी ताक पर रख दिया है। वहीं दूसरी तरफ दिल्ली एनसीआर के शहरों की लाइफ लाइन अरावली पर्वत का सरेआम चीरहरण किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी के आदेशों के बावजूद अरावली पर्वत चारों तरफ धड़ल्ले से अवैध निर्माण हो रहे हैं। आने वाले समय में स्वच्छ हवा मिलने की उम्मीद भी नहीं की जा सकती है।

हरियाली पर नहीं, फिजुल खर्ची में रूची

एमसीएफ और एचएसवीपी की उद्यान शाखाओं में अधिकारियों और कर्मचारी के साथ पर्याप्त संसाधन भी हैं। शहर की ग्रीनबेल्ट और पार्को की हालत को देखकर इनके काम का अंदजा लगाया जा सकता हैं। इन अधिकारियों की रूचि ग्रीनबेल्टों की हरियाली में बिल्कुल दिखाई नहीं देती। उद्यान शाखाओं की रूचि पार्को में कनॉपी, झूले, स्टील के बैंच और अन्य कई तरह की चीजें लगवाने में ज्यादा रहती है। पार्को में हरियाली हो या न हो लेकिन इन तमाम चीजों के लिए बजट की कमी कभी महसूस नहीं की जाती। इससे अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि इन चीजों पर आखिरकार क्यों सरकारी धन खर्च किया जाता है। यदि इन दोनों ही विभागों की उद्यान शाखाएं शहर की ग्रीनबेल्ट और पार्को के रख रखाव पर जरा भी ध्यान देती तो आज शहर की स्थिति इतनी गंभीर नहीं होती।

अरावली का हो रहा चीरहरण

अरावली पर ध्यान देना तोदूर बल्कि जमकर चीरहरण हो रहा है। अरावली पर धड़ल्ले से अवैध फार्म हाउस, वैक्वेट हॉल, व्यवसायिक संस्थानों और अन्य निर्माण हो रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद अरावली पर गुरूग्राम और फरीदाबाद में अनेक स्थानों पर खनन किया जा रहा है। पिछले दिनों अरावली का भ्रमण करने गए पर्यावरण प्रेमियों ने इसका खुलासा किया था। इससे पहले 15 अप्रैल 2021 को पर्यावरण प्रेमियों ने संबंधित विभागों के पत्र लिख कर कार्रवाई की मांगकी थी। इसके बाद पर्यावरण प्रेमियों द्वारा कई बार रिमांइडर भेजे जा चुके हैं। लेकिन अब भी अरावली पर फरीदाबाद, गुरूग्राम और नूंह में अवैध खनन कार्य कर पत्थर चोरी करने काम लगातार जारी है। शहर के पर्यावरण प्रेमियों का कहना है कि यदि इसी तरह अरावली को बर्बाद किया जाता रहा तो एनसीआर रहने लायक नहीं रह जाएगा।

विकास की आड़ में उजड़ी ग्रीनबेल्ट

मुम्बई बड़ौदरा एक्सप्रैस वे के रास्ते में आने वाले निमार्णों को बचाने के लिए एचएसवीपी ने एनलाइनमेंट बदल कर ग्रीनबेल्ट पर लगे सैंकड़ों हरे भरे पेड़ों को कटवा डाला। इससे पहले एससीपीएल द्वारा दुरूस्त सड़क को स्मार्ट रोड बनाने का काम किया गया। उस दौरान ग्रीनबेल्ट को मलवाडाल कर उजाड़ दिया। वहीं रास्ते में आने वाले दर्जनों पेड़ों को भी काट दिया गया। ठीक ठाक ग्रीनबेल्ट में टाइल्स बिछा दी गई। इसी तरह एनआईटी की पैरिफेरल रोड के निर्माण के लिए भी न केवल पेड़ काटे गए बल्कि ग्रीनबेल्टों को भी उजाड़ा दिया गया। वहीं एनआईटी इलाके की रेलवेरोड पर अंडरग्राउंड नाले के निर्माण के रास्ते में आने वाले हरे भरे पेड़ों को उखाड़ दिया गया। लेकिन इतनी संख्या में पेड़ों की बलि देने के बाद संबंधित विभागों ने कहीं पेड़ लगाने की जरूरत महसूस नहीं की।

पर्यावरण संरक्षण का ड्रामा

समाजसेवी रविंद्र चावला का कहना है कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति संबंधित विभाग गंभीर नहीं हैं। पर्यावरण संरक्षण चंद पौधे लगाकर फोटो सेशन तक सीमित है। सरेआम अरावली पर्वत का चीरहरण हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी के आदेशों के बावजूद अरावली से अवैध निमार्ण नहीं हटाया जा रहे है। जिससे अवैध निमार्णों की संख्या बढ़ रही है।

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