महात्मा बुद्ध ने कभी किसी चमत्कार की चर्चा नहीं की। वे किसी भी तरह के चमत्कार को मान्यता भी नहीं देते थे। बुद्ध अक्सर कहा करते थे कि धर्म को सदाचार की जरूरत होती है, किसी चमत्कार की नहीं। उन्होंने हमेशा अवतारवादी दर्शन का विरोध किया। वह कहा करते थे कि कोई अवतार नहीं आएगा, लोगों को उनके संकट से मुक्ति दिलाने। लोगों को अपनी समस्याओं से निपटने के लिए खुद प्रयास करना होगा।
महात्मा बुद्ध की यह बात एक घटना से साबित हो गई कि उन्होंने किसी चमत्कार को अपने जीवन में मान्यता नहीं दी। एक बार की बात है। एक व्यक्ति ने एक बहुत ही सुंदर और हीरे-जवाहरात से जड़े पात्र में शराब भरकर बांस की एक बल्ली पर टांग दिया। उसने साथ में यह भी घोषणा की कि जो व्यक्ति इस ऊंचे टंगे पात्र को बिना किसी सीढ़ी की सहायता से उतार लेगा, मैं उसे इस पात्र के साथ-साथ ढेर सारा धन दूंगा।
धन और सुंदर पात्र की लालच में कुछ लोगों ने उसे उतारने का प्रयास भी किया, लेकिन नाकाम रहे। यह बात धीरे-धीरे महात्मा बुद्ध के शिष्य कश्यप नामक बौद्ध भिक्षुक तक पहुंची। उसने यह बात सुनकर काफी विचार किया और जाकर बिना सीढ़ी लगाए उस पात्र को बांस की बल्ली से उतार लिया। यह देखकर सारे लोग आश्चर्यचकित हो गए। उसी दिन यह बात बुद्ध के पास तक पहुंच गई। वे कश्यप नामक शिष्य के चमत्कार की बात सुनकर उठे और सीधा उसके पास पहुंचे और उस पात्र को धरती पर पटक-पटकर चूर-चूर कर दिया।
लोग यह देखखर चकित थे कि महात्मा बुद्ध कर क्या रहे हैं। इतने कीमती पात्र को तोड़ दिया। इसके बाद महात्मा बुद्ध बोले, भिक्षुओं को चमत्कार का नहीं, सदाचार का आचरण करना चाहिए। धर्म में चमत्कार का कोई स्थान नहीं है।
-अशोक मिश्र