सोशल मीडिया क्या सचमुच बदल रहा है? यह सवाल अब उठने लगा है। जब से एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंसी और डीप फेक जैसे टेक्नोलॉजी का उपयोग सोशल मीडिया में होने लगा है, तब से लोग सोशल मीडिया में अपनी पोस्ट, तस्वीरें डालने से बचने लगे हैं। वैसे भी जब से सोशल मीडिया की शुरुआत हुई है, तबसे यह केवल मनोरंजन का मंच बना हुआ है। फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्वीटर आदि पर लोग इसलिए भी आते थे ताकि वे अपने परिचितों के संपर्क में रहें। बातों और विचारों का आदान-प्रदान हो।
इस पर ढेर सारी अच्छी साहित्यिक रचनाएं, राजनीतिक जानकारियां और देश-दुनिया की खबरें एक साथ मिल जाती थीं। हालांकि इन खबरों की विश्वनीयता पर लोगों को शक तब भी हुआ करता था। विभिन्न पार्टियों के आईटी सेल्स अपने-अपने नजरिये से तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करते थे। बातों का बतंगड़ बनाने में ये राजनीतिक दलों के आईटी सेल्स काफी माहिर होते हैं। सामान्य सी घटना को भी इस तरह पेश करते हैं मानो वे उस घटना के साक्षात गवाह रहे हों।
सनसनीखेज तरीके से घटनाओं को पेश करने की छूट सोशल मीडिया पर जैसे मिली हुई थी। कई बार अखबार वाले भी यहां पोस्ट की गई खबरों को सच मानकर छाप चुके हैं और दूसरे दिन शर्मिंदा भी हुए हैं। किसी का चरित्र हनन करने के मामले में सोशल मीडिया एक बेहतरीन टूल साबित हुआ है। अपने विरोधियों के खिलाफ गाली-गलौज वाली पोस्टें भी यहां देखने को मिल जाएंगी। हद तो तब होने लगी, जब देश की महत्वपूर्ण हस्तियों के चित्रों का उपयोग करके उन्हें अश्लील रूप में दिखाया गया।
डीप फेक टेक्नोलॉजी का उपयोग करके किसी की भी तस्वीर, आवाज या वीडियो का उपयोग करके उसे फूहड़, अश्लील बनाकर पेश किया जा सकता है। जब से एआई चैटबॉट का उपयोग होने लगा है, तब से तो और सोशल मीडिया में गदंगी फैलने लगी है। अब तो हालत यह है कि सोशल मीडिया पर लगभग पचास प्रतिशत पोस्टें चैटबॉट के माध्यम से पोस्ट की जा रही हैं। चैटबॉट तकनीक को बस एक कमांड देना होता है।
वह पोस्ट को अच्छे से अच्छा और गंदे से गंदा बनाकर पोस्ट कर देगा। सोशल मीडिया पर बढ़ती इस प्रवृत्ति को देखकर आईटी विशेषज्ञ तो अब दावा करने लगे हैं कि यदि यही स्थिति रही तो आने वाले एक-दो साल में सोशल मीडिया यूजरों की संख्या घटकर आधी से भी कम रह जाएगी। एक तो सोशल मीडिया की विश्वसनीयता पहले से ही संदेह के घेर में थी। थोड़ी बहुत जो बची थी, चैटबॉट और डीप फेक जैसी तकनीक पूरी तरह खत्म कर देंगी।
स्वस्थ मनोरंजन की जगह अश्लील और भद्दी पोस्टें देखने और पढ़ने वाले वही लोग होंगे, जिनको ऐसी चीजें पढ़ने और देखने की लत होगी। बाकी लोग तो इससे किनारा कर ही लेंगे। मौलिक लेखन तो कहीं दिखेगा भी नहीं। सोशल मीडिया संचालकों के लिए दिनोंदिन बढ़ती यह प्रवृत्ति एक चेतावनी है। यदि अभी नहीं संभले, तो मात्र कुछ लोगों तक ही सिमटकर रह जाएगी सोशल मीडिया।
-संजय मग्गू