नेपाल को हिंदू राष्ट्र घोषित करने की मांग तेज होती जा रही है। 23 नवंबर 2023 को नेपाल की राजधानी काठमांडू में हजारों की भीड़ ने नारा लगाया, हमें गणतंत्र नहीं राजतंत्र चाहिए। जब भीड़ अनियंत्रित हो गई, तो पुलिस को लाठीचार्ज करनी पड़ी। नेपाल के लोगों की यह मांग कोई नई नहीं है। भारत की सांस्कृतिक विरासत से अभिन्न रूप से जुड़े नेपाल में वर्ष 2008 तक राजशाही थी। एक जून 2001 को नेपाल के राजमहल में सामूहिक हत्याकांड हुआ
जिसमें राजा बीरेंद्र बीर विक्रम शाह, रानी, राजकुमार और राजकुमारियों की हत्या हो गई। मीडिया में राजा के भाई ज्ञानेंद्र बीर विक्रमशाह पर व्यक्त किया गया, लेकिन अंतत: उन्हें नेपाल की सत्ता सौंपनी ही पड़ी। राजा की हत्या के बाद से ही नेपाल में लोकतंत्र स्थापित करने की मांग जोर पकड़ने लगी। यह मांग राजा बीरेंद्र के समय से ही की जा रही थी, तभी वहां प्रतीकात्मक रूप से एक बहुदलीय सदन का गठन 1991 में किया गया था। लेकिन जब वर्ष 2008 में राजा ज्ञानेंद्र बीर विक्रम शाह को जनता की प्रचंड मांग पर नेपाल को धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित करना पड़ा तो स्वाभाविक है कि नेपाली सत्ता का केंद्र बदल गया।
वे बहिष्कृत कर दिए गए। लेकिन राजा और उनके समर्थकों में यह आशा बनी रही कि शायद कभी राजतंत्र दोबारा कायम हो जाए। 23 नवंबर और उससे पहले हिंदू राष्ट्र की मांग करने वाले दरअसल राजा ज्ञानेंद्र के समर्थक ही हैं। ये लोग राजतंत्र की मांग करके वैश्विक व्यवस्था रूपी नदी का प्रवाह उलट देना चाहते हैं। दरअसल, इस तरह की मांग करने वाले यह भूल जाते हैं कि पूरी दुनिया में जो व्यवस्था कायम है, उसे पूंजीवादी व्यवस्था कहते हैं।
यह होती तो वैश्विक है, लेकिन उसका संचालन देशीय आधार पर किया जाता है। जिस तरह पूंजीवाद एक देशीय नहीं हो सकता है, वैसे ही साम्यवाद भी एक देशीय नहीं हो सकता है। हां, इसकी शुरुआत जरूर किसी न किसी देश से होती है। ठीक यही बात हिंदू, मुस्लिम, ईसाई आदि राष्ट्र की बात करने वालों पर लागू होती है। सामंती व्यवस्था आज अतीत का हिस्सा हो चुकी हैं। दोबारा इस व्यवस्था को कायम नहीं किया जा सकता है।
जिन राष्ट्रों ने अपने को मुस्लिम राष्ट्र घोषित कर रखा है, उनकी दशा और दिशा देख लीजिए। धार्मिक ज्यादतियों के साथ-साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था से कदमताल न कर पाने की वजह से उनका विकास किस स्तर तक हुआ है या हो रहा है, पूरी दुनिया के सामने है। किसी व्यक्ति के खिलाफ आंदोलन खड़ा करने, चुनाव जीतने और स्वार्थ सिद्ध करने के लिए हिंदू या मुस्लिम या ईसाई राष्ट्र का नारा बहुत लुभावना है, लेकिन सच यही है कि विकास की सुई हमेशा ऊपर की ओर होती है।
विकास की जिस अवस्था में अब हम आ खड़े हुए हैं, उस हालत में हम पीछे नहीं लौट सकते हैं। धार्मिक पाखंड भले ही हम कितना कर लें, लेकिन सच यही है कि सामंतशाही दोबारा सफल नहीं हो सकती है। उसका अंतिम पड़ाव पूंजीवाद ही है। हां, पूंजीवादी व्यवस्था का भी अंतिम पड़ाव तय हो चुका है।
-संजय मग्गू