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एक ही तरह के काम के दो मापदंड क्यों?

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बात का बतंगड़ कैसे बनाया जाता है यह हमारे देश के नेताओं से बेहतर भला और कौन जा सकता है? भारतीय राजनीति में अक्सर ऐसे उदाहरण देखे जा सकते हैं, जब बात को इतना बढ़ा दिया गया कि जन सरोकारों से जुड़े वास्तविक मुद्दे पूरी तरह परिदृश्य से गायब हो जाते हैं। भाजपा तो खास तौर पर तिल का ताड़ बनाने में काफी महारत रखती है।

इन दिनों ऐसा ही एक मुद्दा उपराष्ट्रपति व राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ से जुड़ा हुआ चर्चा में है। पिछले दिनों नवनिर्मित संसद भवन में चल रही कार्रवाई के दौरान सुरक्षा में हुई भारी चूक को लेकर संसद के शीतकालीन सत्रावसान तक भारी हंगामा देखा गया। भारतीय संसदीय इतिहास में पहली बार लगभग 150 सांसदों को निलंबित कर दिया गया। इसी निलंबन को लेकर तथा संसद की सुरक्षा चूक की जांच की मांग को लेकर विपक्षी सांसद, संसद भवन के भीतर व बाहर प्रदर्शन कर रहे थे।

इसी बीच टीएमसी के एक सांसद कल्याण बनर्जी ने राज्यसभा के सभापति धनखड़ की नकल उतारते हुए राहुल गांधी सहित अनेक निलंबित सांसदों को संसद भवन के बाहर सीढ़ियों पर सम्बोधित किया। बस धनखड़ की उतारी गयी, यही नकल भाजपा के लिए न केवल संसदीय गरिमा को धूल धूसरित करने का मुद्दा बन गयी बल्कि बड़ी चतुराई से इसे जाटों के स्वाभिमान से भी जोड़ने की कोशिश कर दी गयी।

यहाँ यह कहने की जरूरत नहीं कि सरकारी व दरबारी मीडिया इस मुद्दे पर सरकार से जुगलबंदी में मसरूफ रहा।
जिस समय देश का मीडिया मूल मुद्दों से लोगों का ध्यान बांटने के लिए ‘उपराष्ट्रपति की मिमिक्री यानी जाटों का अपमान’ जैसा नरेटिव देश पर थोपने की कोशिश कर रहा था, उसी समय भारतीय कुश्ती महासंघ का चुनाव हो रहा था। भारतीय कुश्ती महासंघ के पूर्व अध्यक्ष और सांसद बृज भूषण सिंह के बेहद करीबी वाराणसी निवासी संजय सिंह भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष पद पर भारी बहुमत से निर्वाचित हो रहे थे। कुश्ती महासंघ के पूर्व अध्यक्ष और सांसद बृज भूषण सिंह वही नेता हैं जिन पर कई महिला पहलवानों ने यौन शोषण का आरोप लगाया था।

ऐसी ही एक खिलाड़ी साक्षी मलिक ने तो संजय सिंह के भारतीय कुश्ती महासंघ अध्यक्ष निर्वाचन के बाद मीडिया के समक्ष रोते हुये कुश्ती खेलने से ही संन्यास ले लिया। क्या उस समय या आज किसी मीडिया,भाजपा नेता या जाटों की अस्मिता पर घड़ियाली आंसू बहाने वालों ने अपना मुंह खोला? क्या स्वयं जगदीप धनकड़ ने उस समय देश का गौरव व सम्मान बढ़ाने वाली इन मेडल विजेता खिलाड़ियों का दु:ख दर्द साझा किया था?

यदि बात संसद की गरिमा की भी की जाये तो इसी नवनिर्मित संसद भवन का वह काला दिन भी देश नहीं भूला है जब भाजपा के सांसद रमेश विधुरी ने बसपा सांसद दानिश अली को संसद में बोलते हुए उन्हें न केवल धर्मसूचक गलियां दी थीं बल्कि उन्हें धमकी तक दी थी। उस समय तो देश को संसदीय गरिमा और मर्यादा का पाठ पढ़ाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री संसद में ठहाका लगाकर हंस रहे थे? कहाँ चली गयी थी उस समय संसद की मर्यादा? और कौन खड़ा हुआ था उस समय दानिश अली व उनके धर्म के लोगों को सांत्वना देने?

मीडिया जिस तरह आज सभापति जगदीप धनखड़ की मिमिक्री मात्र को संसद व जाटों की गरिमा से जोड़ रहा है उसे रमेश बिधूड़ी के अपमानजनक,अशिष्ट व असंसदीय बयान में क्या संसदीय गरिमा या दानिश अली के समुदाय का अपमान जैसा कुछ सुझाई नहीं दिया? हमारे देश में गांधी से बड़ा संवैधानिक व्यक्ति और कौन हो सकता है। संसदीय गरिमा की दुहाई देने वाले इन्हीं लोगों की जमात के तमाम नेता गांधी को फैशन की तरह गाली देते रहते हैं।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

-तनवीर जाफरी

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