Editorial: समाज के विकास में विज्ञान और ज्ञान की भूमिका अहम है। हमें इस क्षेत्र में वैज्ञानिक एवं औद्योगिक क्षमता को विकसित और मजबूत बनाने की जरूरत है। आर्थिक विकास और सामाजिक लाभ के लिए विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के उपयोग की निर्भरता हासिल करके ही समग्र विकास की दिशा में बढ़ा जा सकता है। हाल में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी नीति के मसौदे में विभिन्न मंत्रालयों में वैज्ञानिकों की 25 फीसदी तक लैटरल भर्ती का प्रस्ताव किया गया है। इसका मकसद उभरती प्रौद्योगिकी से जुड़े मुद्दों से निपटने के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञों की भूमिका को बढ़ाना है। पेशेवरों और विषय के विशेषज्ञों की तुलनात्मक भूमिकाएं और जिम्मेदारियां इस मसौदे के केंद्र में होगी।
दरअसल, किसी भी नई खोज की बुनियाद, विज्ञान में आधारभूत शोध से ही होता है। इसलिए देश में नवाचार के साथ आधारभूत विज्ञान में शोध कार्यों को बढ़ावा दिया जाना जरूरी है। ऐसे कई उदाहरण हैं जिनमें विज्ञान के क्षेत्र में शोध संपन्न होने के कई वर्षों बाद भी उस शोध पर आधारित नवाचार होते रहे हैं। मौजूदा स्थिति में देश में हो रहे वैज्ञानिक शोध कार्यों को समाज की जरूरत के मुताबिक ढालना जरूरी है। हमें अंतर विश्वविद्यालय शोध कार्यक्रमों की आवश्यकता है जिससे वैज्ञानिक, शोध संस्थानों के साथ मिलकर उच्च स्तरीय शोध कार्य कर सकें। साथ ही विज्ञान के क्षेत्र में शोध कार्य के लिए आवेदनों को प्रस्तुत करने एवं समीक्षा में डिजिटल प्रणाली के उपयोग की भी अत्यावश्यकता है जिससे समय की बचत होगी और दोहराव की संभावना भी कम होगी। विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में निरंतर आगे बढ़ते रहने के लिए शोध पत्रों की संख्या बढ़ाने के स्थान पर शोध के प्रभाव को व्यापक रूप देने की दिशा में कार्य करने पर बल दिया जाना भी लाजिमी है।
इस दिशा में कदम उठाते हुए शोधकर्ताओं को पोस्ट डॉक्टरेट के लिए प्रोत्साहित करने हेतु नई योजना आरंभ की गई है। साथ ही उन्हें समाज से जोड़ने के लिए अपने शोध क्षेत्र से संबंधित लोकप्रिय लेख लिखने के लिए भी प्रेरित किया जा रहा है। तथापि अब भी भागीरथ प्रयासों की दरकार है। अंतरिक्ष अन्वेषण, कृषि, फार्मा जैसे क्षेत्रों में काम करते हुए उन्हें वास्तविक जीवन में उपयोगी तथा सामाजिक समस्याओं को हल करने की दिशा में कारगर बनाना होगा। सशक्त नीतियां, अधिक छात्रवृत्तियां, उच्च स्तरीय सुविधाएं एवं उपकरण उपलब्ध कराकर विज्ञान में शोध कार्यों को बढ़ावा देने और वैज्ञानिकों को बेहतरीन शोध कार्यों के लिए सक्षम बनाने में निश्चित ही मदद मिल सकती है।
इसी तरह शैक्षिक नवोन्मेष में भी सतत व एकनिष्ठ प्रयासों की तत्काल आवश्यक्ता है। शैक्षिक मानकों के उत्थान और सतत विकास के लिए शिक्षण प्रणाली का पुनरुद्धार एवं सुदृढ़ीकरण एक शक्तिशाली माध्यम है। शिक्षक नवाचार द्वारा ऐसी प्रभाव पूर्ण अधिगम परिस्थिति का निर्माण किया जा सकता है जिसमें करके सीखने एवं अभ्यास द्वारा सीखने तथा प्रत्यक्ष अनुभवों को ग्रहण करने का अवसर दिए जाने से बात बन सकती है। अब यह मांग जोर पकड़ने लगी है कि शिक्षा में जन आकांक्षाओं एवं लक्ष्यों के अनुरूप परिवर्तन किया जाए।
विज्ञान और तकनीकी ज्ञान के विस्फोट से जब हरेक क्षेत्र में नए-नए नवाचार अपनाए जा रहे हैं तो शिक्षण में क्यों नहीं। एक्शन फॉर एबिलिटी डेवलपमेंट एंड इंक्लूजन ने बच्चों की शिक्षा संबंधी विशेष आवश्यकताओं में अंतराल दूर करने संबंधी सुझाव दिए हैं और कहा कि शिक्षा के साथ प्रशिक्षित शिक्षकों का एक कैडर तैयार किया जाए ताकि बच्चों में पढ़ने-सीखने में रुचि दिखाने के लिए उन्हें भावनात्मक कौशल दिए जा सके और उनमें नवोन्मेष का विकास किया जाए। शैक्षिक नवाचार के जरिये बच्चों को बोझिल और उबाऊ शिक्षण से हटकर आनंदमय एवं रुचिकर शिक्षा दे कर उनका गुणात्मक विकास किया जा सकेगा।
(यह लेखिका के निजी विचार हैं।)
- डॉ. दर्शनी प्रिय