कन्फ्यूशियस चीन के एक महान समाज सुधारक और दार्शनिक थे। उनका जन्म ईसा पूर्व पांचवीं शताब्दी माना जाता है। भारत में ठीक उन्हीं दिनों महात्मा बुद्ध और स्वामी महावीर अपने नए दार्शनिक विचारों से समाज को सुधारने का प्रयास कर रहे थे। उन दिनों चीन में झोऊवंश का शासन चल रहा था। कन्फ्यूशियस बहुत सरल और व्यावहारिक तरीके से लोगों को शिक्षित करने का प्रयास कर रहे थे। ठीक महात्मा बुद्ध और स्वामी महावीर की तरह। सरल और आम जन की समझ में आने वाली भाषा में।
कन्फ्यूशियस के पास एक अमीर व्यक्ति आया और उसने कहा कि मैं बहुत दिनों से एक बात को लेकर उलझन में हूं कि क्या कोई व्यक्ति महान होते हुए भी अज्ञात रह सकता है। यह सुनकर कन्फ्यूशियस मुस्कुराए और बोले, कल मैं आपको एक ऐसे महान व्यक्ति से मिलवाऊंगा जो अज्ञात भी है। दूसरे दिन उस अमीर व्यक्ति के साथ कन्फ्यूशियस एक गांव की ओर चले। काफी दूर जाने पर उन्होंने देखा कि एक बूढ़ा व्यक्ति पानी का घड़ा रखे एक पेड़ के नीचे बैठा है। दोनों जब उस बुजुर्ग व्यक्ति के पास पहुंचे तो उसने उन्हें पानी पिलाया, तब जाकर दोनों की जान में जान आई। क्योंकि उन दिनों गर्मी का मौसम था और वे दूर से पैदल चलकर भी आए थे।
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पानी पीने के बाद उस अमीर आदमी ने कुछ सिक्के निकाले और उस बुजुर्ग को देने का प्रयास किया। बुजुर्ग ने पैसे लेने से मना करते हुए कहा कि मैं यह काम किसी पैसे के लिए नहीं करता हूं। बूढ़ा गया हूं। इस उम्र में मैं लोगों का इसी तरह भला कर सकता हूं। मेरा बेटा एक बड़ा व्यवसायी है। उस बुजुर्ग की बात सुनकर कन्फ्यूशियस ने मुस्कुराते हुए कहा कि आप उसी आदमी से मिल रहे हैं जिसके बारे में हमने बात की थी। यह सुनकर वह आदमी बहुत प्रसन्न हुआ, उसे अपने प्रश्न का जवाब मिल चुका था।
-अशोक मिश्र
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