ईसा पूर्व 544 से 492 के बीच की बात है। उस समय मगध पर बिंबिसार का शासन था। बौद्ध और जैन ग्रंथों में उसका एक नाम श्रेणिक भी कहा गया है। उसकी चार रानियां बताई गई हैं। उसकी एक रानी कोसल प्रदेश के राजा प्रसेनजित की बहन कौशला देवी थीं। दूसरी रानी वैशाली के राजा चेटक की पुत्री चेलना थी। एक गणिका आम्रपाली भी बिंबिसार की पत्नी बताई जाती है। चौथी पत्नी कुरुदेश की राजकुमारी क्षेमा थी। सम्राट बिंबिसार का एक पुत्र अजातशत्रु था जो कौशला देवी की कोख से पैदा हुआ था। कहा जाता है कि राजा ने अजातशत्रु को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर रखा था, लेकिन उसे राजसत्ता पाने की बड़ी जल्दी थी। उसने अपने पिता की हत्या करके राज गद्दी हथिया ली।
यह भी कहा जाता है कि उसने अपने पिता को बंदी बना लिया था, जब उसे पता चला कि उसके पिता ने उसे उत्तराधिकारी बनाया है, तो वह अपने पिता से मिलने गया, लेकिन तब तक बिंबिसार ने जहर खा लिया था। पिता की हत्या का अपराधबोध उसे आजीवन रहा। उसके मन को चैन नहीं मिल रहा था। उसने अपने पिता की हत्या के अपराध बोध से मुक्ति का मार्ग महात्मा बुद्ध से पूछा तो उन्होंने कहा कि तुम्हें पश्चाताप करना होगा। यदि सच्चे मन से पश्चाताप करते हो, तो मुक्ति और मोक्ष के द्वार तुम्हारे लिए खुल जाएंगे। आत्मशुद्धि ही तुम्हें मुक्ति दिला सकती है।
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इसके बाद उसने महात्मा बुद्ध के मार्ग पर चलते हुए न्याय, शांति और धर्म का पालन किया। धीरे-धीरे उसके मन की अशांति खत्म होती गई और वह एक अच्छा राजा साबित हुआ। उसके बारे में यह भी कहा जाता है कि अपने मामा प्रसेनजित को हराकर उसने उनकी पुत्री वजिरा से उसने विवाहकर लिया था। महारानी विजरा का पुत्र उदयभद्र बाद में मगध राज्य का उत्तराधिकारी बना।
-अशोक मिश्र
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