वोटिंग यानी मतदान। मतदान शब्द दो शब्दों के योग से बना है मत+दान यानी मत का दान। अब कुछ दिन पहले प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता परेश रावल ने कम मतदान प्रतिशत को देखते हुए गुस्से में कहा था कि मतदान न करने वालों को सजा मिलनी चाहिए। शायद अभिनेता परेश रावल को यह बात पता नहीं है कि इस मुद्दे पर भारतीय संसद में बहस हो चुकी है। लेकिन अंतत: यही तय पाया गया कि मत+दान को मतदान ही रहने दिया जाए। हमारी संस्कृति में दान का बहुत बड़ा महत्व बताया गया है, लेकिन इस दान को हमेशा स्वैच्छिक ही माना गया है। किसी भी व्यक्ति से दान जबरदस्ती नहीं लिया जा सकता है। यदि दान लेने में जबरदस्ती की गई, तो वह दान नहीं लूट होगी, डकैती होगी। कम से कम दान तो नहीं होगी। हरियाणा में परसों यानी 25 मई को मतदान होना है। पिछले पांच चरणों में मतदान के प्रतिशत को देखते हुए प्रदेश में मतदान का प्रतिशत बढ़ाने की चिंता होना स्वाभाविक है।
सरकार से लेकर समाज का प्रबुद्ध वर्ग सभी उपलब्ध माध्यमों से अधिक से अधिक मतदान की अपील कर रहा है। लेकिन इसका असर कम ही पड़ता दिखाई दे रहा है। पिछले पांच चरणों में हुए मतदान का यदि औसत निकाला जाए, तो लगभग 60-62 के आसपास बैठता है। इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में इसका मतलब यही हुआ कि 40-38 प्रतिशत लोगों ने अपने मताधिकार का उपयोग नहीं किया। अब इन 40-38 लोगों के बारे में दो बातें कही जा सकती हैं। पहली यह कि इन लोगों को इस लोकतांत्रिक व्यवस्था पर विश्वास नहीं है। इस कारण ये लोग मतदान करने नहीं आए।
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दूसरी यह कि ये लोग इतने निकम्मे हैं कि इन्हें अपने देश और समाज से कोई लेना-देना नहीं है। कोई भी चुना जाए, कैसी भी सरकार बने, इनकी बला से। लोकतांत्रिक व्यवस्था पर इन लोगों का विश्वास कायम हो या निकम्मे लोग अपने घरों से निकलकर मतदान बूथ तक जाएं, इसका प्रयास सरकार से लेकर प्रबुद्ध नागरिक, संगठन करते हैं।
इन्हीं लोगों को समझाने के लिए तमाम नारे गढ़े गए हैं, जैसे पहले मतदान, फिर जलपान। जब सांसद, विधायक, पार्षद आदि चुनने के लिए मतदान की व्यवस्था बनाई जा रही थी, तब सोचा गया था कि पढ़े-लिखे और शहरी लोग तो अपने मताधिकार का प्रयोग जरूर करेंगे। बस, गांवों में रहने वाले अनपढ़ लोगों को मतदान के प्रति जागरूक करना होगा। लेकिन जैसे-जैसे हर पांच साल बाद चुनावी प्रक्रिया आगे बढ़ती गई, तो यह नतीजा निकला कि ग्रामीण क्षेत्र के लोग शहरी लोगों से कहीं ज्यादा मताधिकार का उपयोग करते हैं। शहरी और पढ़े-लिखे माने जाने वाले मतदाता पोलिंग बूथ तक कम पहुंच रहे हैं। जिन पर संविधान निर्माताओं ने ज्यादा भरोसा किया, वही निकम्मे निकले।
-संजय मग्गू
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