अब इस बात पर चर्चा करना बेकार है कि महिलाओं ने कम मतदान किए और पुरुषों ने ज्यादा। अब जो होना था, वह हो गया। प्रदेश की दसों लोकसभा सीटों के उम्मीदवारों का भाग्य ईवीएम में कैद हो गया है। अब चार जून को ही पता चलेगा कि मतदाताओं ने किसकों अर्श पर बिठाया है और किससो फर्क पर लाकर पटक दिया। हां, आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर अभी से अधिकारियों को सतर्क हो जाना चाहिए ताकि अक्टूबर-नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों में मतदान का प्रतिशत संतोषजनक स्तर तक पहुंच सके। वैसे यह भी सही है कि लगभग सभी दलों ने इस बार लोकसभा का चुनाव कुछ इस तरह लड़ा है ताकि विधानसभा में उन्हें मतदाताओं को अपने पक्ष में करने या मतदान करने के लिए प्रोत्साहित करने में कम मेहनत करनी पड़े। लगभग सभी दलों ने लोकसभा चुनावों के दौरान प्रचार करते हुए स्थानीय मुद्दों पर भी अपना नजरिया पेश करके एक तरह से विधानसभा चुनाव का भी प्रचार किया है।
इसे ‘एक पंथ दो काज’ की भी संज्ञा दी जा सकती है। वैसे इस बार लोकसभा चुनाव के दौरान जिस तरह राष्ट्रीय मुद्दों की जगह स्थानीय मुद्दे छाए रहे, उससे राजनीतिक दलों को यह आभास जरूर हो गया कि निकट भविष्य में होने वाले विधानसभा के चुनावों में किन मुद्दों पर बातचीत की जा सकती है, किस तरह की रणनीति बनाई जा सकती है। इस बात को समझते हुए प्रदेश के राजनीतिक दलों को सबसे पहले महिला मतदाताओं पर गंभीरता से विचार करना होगा। उन्हें कुछ ऐसा करना होगा ताकि महिलाएं घरों से निकलकर मतदान केंद्र तक पहुंच सकें।
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इस बार ही पुरुषों के मुकाबले में डेढ़ प्रतिशत महिलाओं ने कम मतदान किया है। यदि हम पिछले कई दशकों से मतदान के आंकड़ों पर गौर करें, तो पता चलता है कि महिला मतदाताओं में वोटिंग के प्रति रुझान बढ़ा है। पिछले 25 साल में मतदान करने वाली महिलाओं की संख्या में 11 प्रतिशत इजाफा हुआ है। लेकिन यह बढ़ोतरी काफी नहीं है। राज्य के नीति निर्धारक तत्वों को पिछले कुछ सालों से लगातार घटते मतदान ने चिंता में डाल दिया है।
वे बराबर प्रयास कर रहे हैं कि किसी भी तरह हर चुनाव में वोटिंग परसेंटेज बढ़े ताकि सही लोगों का चुनाव संभव हो सके। जो लोग लोकतांत्रिक व्यवस्था के हामी हैं, उनके लिए सचमुच मतदान प्रतिशत का घटना चिंताजनक है। दरअसल, यह सच है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था के भ्रष्ट आचरण ने लोगों की इस व्यवस्था पर से विश्वास उठा दिया है। भ्रष्ट और बाहुबली नेताओं और प्रशासन ने जितना देश की प्रशासनिक व्यवस्था का नुकसान किया है, उतना किसी ने नहीं किया है। जब कोई दबंग व्यक्ति अपने बाहुबल और धन बल के सहारे चुनाव जीत जाता है, तो लोगों की रुचि कम होनी स्वाभाविक है।
-संजय मग्गू
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