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अयोध्या से सीखने होंगे लोकतंत्र के सबक

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फैजाबाद लोकसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह के हारने के बाद सोशल मीडिया से लेकर अन्य मंचों पर वहां मतदाताओं की जो लानत मलामत हो रही है, वह उन सपनों के बिखर जाने का नतीजा है जो खुली आंखों से देखे गए थे। अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण और अर्धनिर्मित राम मंदिर में पूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के दौरान भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं की अपेक्षा थी कि यह जोश और जुनून लोकसभा चुनाव तक बना रहेगा और भाजपा के पक्ष में एक मुश्त वोट डाला जाएगा। दरअसल, जिन लोगों ने उत्तर प्रदेश में 70-72 सीटों पर विजय का सपना देखा था, वह लोग उत्तर प्रदेश खास तौर पर अयोध्या के मतदाताओं की प्रवृत्ति का आकलन करने में भूल कर बैठे।

अयोध्या वह अयोध्या है जिसके शासक कभी राजा राम रहे हैं। राजा राम के शासन में कभी किसी के साथ भेदभाव नहीं हुआ। एक कुत्ता भी राम दरबार में जाकर न्याय की गुहार लगा सकता था। राम को उस कुत्ते के साथ भी न्याय करना पड़ा। अयोध्या के प्रबल लोकतांत्रिक होने का इससे बड़ा सुबूत क्या होगा कि लोकमत के आगे भगवान राम को भी झुकना पड़ा और उन्हें अपनी पत्नी सीता को वनवास पर भेजना पड़ा। अयोध्या में जैनियों का प्रभाव रहा, बौद्धों का प्रभाव रहा, सनातनियों का प्रभाव रहा। इसी अयोध्या ने सन 1991 और 1996 में विनय कटियार को सांसद बनाया, तो सन 1998 में तीसरी बार उन्हें पराजय का स्वाद भी चखाया। नास्तिक माने जाने वाले सीपीआई के मित्रसेन यादव भी यहां के सांसद रह चुके हैं। सन 1985 में जब भाजपा राममंदिर को मुक्त कराने का संकल्प ले रही थी, तब कांग्रेस के निर्मल खत्री यहां के सांसद थे। अयोध्या ने कभी किसी के साथ भेदभाव नहीं किया।

अयोध्या का मिजाज हमेशा समावेशी रहा। जो अच्छी नीयत से अयोध्या की शरण में आया, अयोध्या ने उसका आगे बढ़कर स्वागत किया। गले लगाया, लेकिन नीयत बदली तो सजा देने में भी अयोध्या पीछे नहीं रही। छह दिसंबर 1992 में जब अयोध्या में हजारों की भीड़ बाबरी मस्जिद को ढहा रही थी, तब भी अयोध्या मौन थी। अयोध्या के निवासी शांत थे। अयोध्या में रहने वाले हिंदू-मुसलमान एक दूसरे को लेकर कतई भयभीत नहीं थे। उन्हें डर था, तो बाहर से आए लोगों से। लेकिन छह दिसंबर और उसके बाद भी अयोध्या में कोई ऐसी घटना नहीं हुई जिसने वहां के निवासियों के आपसी भाईचारे को चोट पहुंचती हो, सांप्रदायिक सौहार्द को क्षति पहुंचाई गई हो।

पूरे देश में भले ही कहीं-कहीं छिटपुट घटनाएं हुई हों, साल 2002 में गुजरात में गोधरा कांड हुआ हो, लेकिन अयोेध्या अविचलित रही। दुनियाभर हिंदुओं की आस्था के केंद्र रामजन्म भूमि वाले वार्ड से पिछले साल हुए नगर निगम चुनाव में पार्षद के रूप में निर्दलीय प्रत्याशी सुल्तान अंसारी जीते। रामजन्मभूमि जिस वार्ड में पड़ता है, उस क्षेत्र के लोगों को अपना पार्षद एक मुसलमान को चुनने में कोई परेशानी नहीं हुई। अयोध्या और भगवान राम के नाम पर राजनीति करने वालों को इन घटनाओं से सीखना चाहिए। पूरे देश की जनता धार्मिक है, किंतु असहिष्णु नहीं है, धर्मांध नहीं है।

-संजय मग्गू

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