बांग्लादेश की घटना कोई आकस्मिक नहीं है। सन 2017 से ही चीन और अमेरिका जैसे देश बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के लिए प्रयत्नशील थे, लेकिन सफलता मिली चीन को। चीन ने हमारे देश के पड़ोसी देशों में इस तरह अपना प्रभुत्व जमा लिया है जिससे अब यह लगने लगा है कि उसने भारत को चारों ओर से घेर लिया है। बात करते हैं सबसे पहले श्रीलंका की। दो साल पहले यानी साल 2022 में जब श्रीलंका में गोटाबाया राजपक्षे के खिलाफ जनाक्रोश भड़का था, तब चीन राजपक्षे परिवार के साथ खड़ा था और अमेरिका ने जनविद्रोह का समर्थन किया था। 21 सितंबर को श्रीलंका में राष्ट्रपति पद पर चुनाव होना है और राष्ट्रपति पद के दो-दो उम्मीदवारों को अमेरिका और चीन का समर्थन हासिल है। अब देखना यह है कि सफलता किसको मिलती है। वैसे भी श्रीलंका में चाहे जिसकी सरकार बने, चीन का प्रभाव कम होने वाला नहीं है क्योंकि उसने श्रीलंका की अर्थव्यवस्था मे अच्छी खासी पूंजी निवेश कर रखा है।
पाकिस्तान में तो चीन बहुत पहले से ही अपने पांव पसार चुका था। पाकिस्तान में सरकार किसी की भी रही हो, उसने भारत विरोध का जाप कभी नहीं छोड़ा। भारत विरोधी गतिविधियों में पाकिस्तान हमेशा शामिल रहा। म्यांमार में इन दिनों गृहयुद्ध चल रहा है। तीन साल पहले जिस तरह सैन्य जुंटा ने तख्तापलट किया था, उस सैन्य जुंटा को चीन का समर्थन हासिल है, ऐसी खबरें मीडिया में आई थीं। अभी तक वहां की जनता सैन्य जुंटा के खिलाफ लड़ रही है। भारत का सबसे विश्वसनीय देश नेपाल में राजशाही खत्म होने के बाद से ही चीन अपने पांव पसारने की कोशिश में लगा हुआ था। नेपाल में अभी जो सरकार बनी है, वह भारत समर्थक नहीं कही जा सकती है।
पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड तो चीन समर्थक थे ही, शेर बहादुर देउबा और केपी शर्मा ओली भी भारत को लेकर कोई अच्छी राय नहीं रखते हैं। नेपाल की सरकार पिछले एक दशक से कमोबेश चीनपरस्त ही रही है। भारत के पड़ोस में बसे एक छोटे से देश मालदीव में भी जून 2024 में जो नई सरकार बनी है, वह भी चीन के प्रभाव में है। राष्ट्रपति चुनाव के दौरान मोहम्मद मोइज्जू ने बाकायदा इंडिया आउट का नारा दिया था। मालदीव की जनता ने उन्हें राष्ट्रपति पद के लिए चुन लिया। राष्ट्रपति चुने जाने के बाद मोइज्जू सबसे पहले चीन की यात्रा पर गए, जबकि परंपरा यह थी कि मालदीव का नया राष्ट्रपति पहली यात्रा भारत की करता रहा है।
दक्षिण एशिया में बांग्लादेश की शेख हसीना सरकार ही भारत समर्थक थी जिसे भी छात्र आंदोलन की आड़ में अपदस्थ कर दिया गया है। जाहिर सी बात है कि अब वहां जो भी सरकार बनी है, वह भारत समर्थक तो नहीं होगी। खालिदा जिया पहले ही चीन और पाकिस्तान परस्त रही हैं। सिर्फ भूटान ही भारत का पारंपरिक मित्र था और है। अब जब चीन ने किसी भी रूप में भारत को चारों ओर से घेर लिया है, तो भारत को भी जवाबी कार्रवाई करनी चाहिए। यही समय की मांग है।
-संजय मग्गू
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