सुकरात का जन्म 470 ईसा पूर्व यूनान के एथेंस शहर में हुआ था। सुकरात अपने समय के सबसे चर्चित दार्शनिक थे। उनके दर्शन का प्रभाव यूरोप और एशिया पर बहुत पड़ा था। सुकरात ने व्यक्तिगत रूप से दर्शन या समाज पर कोई पुस्तक की रचना नहीं की थी। लेकिन उनके शिष्य प्लेटो (अफलातून) और क्सेफोन की लिखी पुस्तकों के माध्यम से जानकारी मिलती है। राज सत्ता के खिलाफ विद्रोह भड़काने के आरोप में सुकरात को मौत की सजा दी गई थी। उन दिनों यूनान में जिसे मौत की सजा दी जाती थी, उसे जहर पीने को दिया जाता था। एक बार की बात है। सुकरात अपने शिष्यों के साथ बैठे प्रवचन कर रहे थे। सुकरात के पास बहुत सारे लोग अपनी समस्याएं लेकर आते थे।
सुकरात उन समस्याओं को हल करने का प्रयास करते और लोगों को सही मार्ग दिखाते थे। प्रवचन के दौरान एक अमीर आदमी सुकरात के पास आया और अपनी अमीरी का प्रदर्शन करने लगा। उसने अहंकार में कहा कि उसके पास बहुत सारी दौलत है। यदि वह चाहे तो दुनिया का कोई भी सुख हासिल कर सकता है। हर किसी के सामने अपनी अमीरी का प्रदर्शन करने की उसकी आदत थी। सुकरात के सामने भी वह ऐसा ही कर बैठा। कुछ देर तक सुकरात उसकी बातों को सुनते रहे, लेकिन जब उसने अपनी प्रशंसा बंद नहीं की, तो सुकरात ने उस समय प्राप्त दुनिया के नक्शे के सामने उसको ले जाकर खड़ा कर दिया और बोले, इस नक्शे में यूनान कहां हैं?
उस आदमी ने एक जगह अंगुली रख दी। फिर उन्होंने पूछा कि इसमें एथेंस कहां है? उसने अंदाज से एक जगह अंगुली रख दी। तब सुकरात ने पूछा कि इसमें तुम्हारा महल कहां है? यह सुनकर वह आदमी समझ गया कि सुकरात क्या कहना चाहते हैं। सुकरात ने कहा कि इतनी बड़ी दुनिया में तुम्हारे जैसे अमीर न जाने कितने होंगे? फिर तुम्हें अपनी अमीरी पर इतना घमंड क्यों है? यह सुनकर वह आदमी शर्मिंदा होकर चला गया।
-अशोक मिश्र