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आलाकमान को हरियाणा कांग्रेस के बारे में लेने होंगे कड़े फैसले

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संजय मग्गू
हरियाणा चुनाव परिणाम आने के बाद सब कुछ स्थिर सा होता हुआ दिखाई दे रहा है। हारे और जीते प्रत्याशी अब आगे की रणनीति बनाने से पहले थोड़ा सुस्ताने के मूड में होंगे। पूरे दो महीने जी तोड़ मेहनत जो की है। हारे हुए प्रत्याशी भगवान और मतदाताओं का फैसला मानकर चुप बैठ जाएंगे, जीते हुए विधायक इतराएंगे। कुछ दिनों बाद समीक्षा करेंगे कि क्यों जीते और क्यों हारे? ताकि जीतने वाला और हारने वाला आगे की रणनीति तय करे। जो हारा है, वह उन कारणों को दूर करने की कोशिश करेगा जिसकी वजह से हार हुई है। जीतने वाला उन कारणों को जानकर अगले पांच साल बाद जो चुनाव होंगे, उनमें दोहराने की कोशिश करेगा। खेल और राजनीति में हार-जीत चलती रहती है। एक जीत और हार से हिम्मत नहीं हारनी चाहिए, यह सभी कहते हैं, लेकिन हारने वाले को सबक जरूर लेना चाहिए। कांग्रेस को इस बारे में सबसे ज्यादा मंथन करने की जरूरत है। कांग्रेस को सबसे पहले उन फैक्टरों का पता लगाना होगा जिसकी वजह से मतदाताओं ने उन पर विश्वास नहीं किया। उनके चुनाव घोषणा पत्र में क्या कमी रह गई। यह सही है कि जिस दल के पास सत्ता होती है, उसके पास तमाम तरह की सहूलियतें होती हैं। पूरा प्रशासन उसके इशारे पर काम करता है। वह उनके पक्ष में काम करके उनकी दिक्कतों को दूर करने में सहायता पहुंचाता है। वहीं विपक्ष को सब कुछ अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों के भरोसे करना होता है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि नौकरशाही या शासनतंत्र की ही बदौलत चुनाव जीते जाते हैं। यदि ऐसा होता, तो विपक्षी पार्टी किसी भी राज्य में चुनाव ही नहीं जीत पाती। नौकरशाही थोड़ी सी मददगार हो सकती है, लेकिन पूरी तरह नहीं। यह विपक्षी दलों को सोचना होगा कि किस तरह माहौल को अपने पक्ष में किया जाए। कांग्रेस को सबसे पहले अपने भीतर पिछले कई सालों से पनप रही गुटबाजी को एक सिरे से खत्म करना होगा। उसे ऐसी व्यवस्था और सख्त अनुशासन कायम करना होगा कि प्रदेश या राष्ट्रीय हाईकमान का फैसला ही सर्वोपरि माना जाए। जो भी इसके खिलाफ जाए, उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाए। जब तक कठोर अनुशासन नहीं होगा, संगठन मजबूत होने से रहा। यदि किसी कार्यकर्ता या नेता को कोई दिक्कत है, तो उसके लिए एक मंच बनाया जाए और उस पर पारदर्शी तरीके से बात सुनी जाए, लेकिन संगठन से बाहर बयान देने वाले को बड़ी बेमुरौव्त तरीके से पार्टी से बाहर करने में तनिक भी देर न की जाए। किसी भी पार्टी की छवि को सबसे बड़ा नुकसान पार्टी में चल रही गुटबाजी और आंतरिक कलह से होता है। जनता में भी कोई अच्छी छवि नहीं बनती है। संगठन में भी उत्साह नहीं रहता है। कार्यकर्ता को कोई राह दिखाने वाला भी नहीं होता है गुटबाजी के चलते।

संजय मग्गू

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