भारत सरकार अपनी इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) आयात योजना में फिर से रुचि पैदा करने के लिए एक नई पहल कर रही है। सरकार का उद्देश्य कम आयात शुल्क पर प्रीमियम इलेक्ट्रिक कारों के आयात में रुचि रखने वाली कंपनियों से फीडबैक प्राप्त करना है, ताकि योजना की कम रुचि के कारणों को समझा जा सके। इस योजना को पहले बड़े पैमाने पर लॉन्च किया गया था, लेकिन प्रतिक्रिया उतनी उत्साहजनक नहीं रही, जितनी सरकार ने अपेक्षित की थी। अब सरकार एक कार्यशाला आयोजित करने जा रही है, जिसमें कंपनियां योजना को बेहतर ढंग से समझ सकेंगी और इसके बारे में सुझाव दे सकेंगी।
टेस्ला की दिलचस्पी और योजना की शुरुआत
पिछले साल भारत सरकार ने उच्च-स्तरीय इलेक्ट्रिक वाहनों के आयात और स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए एक योजना शुरू की थी। इसका उद्देश्य प्रमुख ईवी निर्माताओं, खासकर टेस्ला को आकर्षित करना था। टेस्ला ने पहले कहा था कि यदि आयात शुल्क कम किया जाता है, तो वह भारतीय बाजार में अपनी कारों की बिक्री शुरू करने में दिलचस्पी दिखाएगी। इस कदम से उम्मीद की जा रही थी कि अंतरराष्ट्रीय कंपनियां भारतीय बाजार में अधिक निवेश करेंगी और ईवी क्षेत्र को बढ़ावा मिलेगा। हालांकि, इस योजना को लेकर मिली प्रतिक्रिया अपेक्षाकृत कम रही है, और केवल कुछ कंपनियों ने ही इसमें भागीदारी दिखाई है।
कार्यशाला का उद्देश्य और इसका महत्व
भारत सरकार इस महीने के अंत में इस योजना में रुचि रखने वाली कंपनियों के लिए एक कार्यशाला आयोजित करने की योजना बना रही है। कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य कंपनियों को इस योजना को समझने का अवसर देना और उनसे फीडबैक प्राप्त करना है। यह फीडबैक योजना के अंतिम नियमों को प्रभावित कर सकता है और भविष्य में नीति में सुधार के लिए मार्गदर्शन प्रदान कर सकता है। यह परामर्श का दूसरा दौर होगा, और पहला दौर अप्रैल 2024 में आयोजित किया गया था, जिसमें टाटा मोटर्स, मारुति सुजुकी, ह्यूंदै, बीएमडब्ल्यू, मर्सिडीज जैसी प्रमुख कंपनियां शामिल थीं। इस कार्यशाला में टेस्ला के प्रतिनिधियों और अन्य प्रमुख वैश्विक कंपनियों के भी भाग लेने की संभावना है।
ईवी आयात नीति की शर्तें और लाभ
भारत सरकार की ईवी आयात नीति (SPMEPCI) के तहत, कंपनियों को कुछ शर्तों के तहत कम आयात शुल्क पर इलेक्ट्रिक कारों का आयात करने की अनुमति दी जाती है। इसके तहत कंपनियों को पांच साल में कम से कम 500 मिलियन डॉलर (लगभग 4,150 करोड़ रुपये) का निवेश करना होता है, चाहे वह ईवी फैक्ट्री स्थापित करें या ईवी चार्जिंग स्टेशन। इसके साथ ही कंपनियों को तीन साल के भीतर कम से कम 25 प्रतिशत घरेलू मूल्य संवर्धन (DVA) प्राप्त करना होगा, और इसे पांच साल में 50 प्रतिशत तक बढ़ाना होगा।
निवेश और स्थानीयकरण की चुनौतियाँ
हालांकि, कुछ कंपनियों ने इस योजना में रुचि दिखाई है, लेकिन कई कंपनियां उच्च निवेश और स्थानीयकरण आवश्यकताओं को लेकर संकोच कर रही हैं। सरकार को उम्मीद है कि आगामी परामर्श से यह स्पष्ट हो सकेगा कि कंपनियों को अधिक प्रोत्साहन की आवश्यकता है या नीति में कुछ समायोजन करने से उनकी भागीदारी बढ़ सकती है। यदि इन आवश्यकताओं को पूरा किया जाता है, तो कंपनियां उच्च आयात शुल्क के मुकाबले कम शुल्क पर अपने उत्पाद भारतीय बाजार में ला सकती हैं।
भारत के ईवी परिदृश्य का भविष्य
इन प्रोत्साहनों और शर्तों के बावजूद, कंपनियों की भागीदारी अभी भी सीमित है। सरकार टेस्ला और विनफास्ट जैसी प्रमुख कंपनियों की प्रतिक्रिया पर ध्यान दे रही है, और उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में ये योजनाएँ भारत के ईवी परिदृश्य को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकती हैं। यदि सरकार अपनी नीति में कुछ सुधार करती है और कंपनियों को और अधिक प्रोत्साहन प्रदान करती है, तो यह भारतीय ईवी उद्योग को एक नई दिशा दे सकता है और वैश्विक कंपनियों के लिए भारत को एक आकर्षक बाजार बना सकता है।