घुड़सवारी में घोड़े को एथलीट माना जाए या उपकरण, इस सवाल ने हाल के दिनों में चर्चा का विषय बना लिया है। भारतीय घुड़सवारी महासंघ (ईएफआई) ने घोड़ों को एथलीटों के साथ जोड़ने की इच्छा जताई है, लेकिन घुड़सवारों ने इस विचार पर चेतावनी दी है, जिससे आगे चलकर चीजें जटिल हो सकती हैं।
दिल्ली उच्च न्यायालय में ईएफआई के प्रशासन पर एक याचिका दायर की गई है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि उसने राष्ट्रीय खेल संहिता का उल्लंघन करते हुए निजी क्लबों और संस्थानों को मतदान का अधिकार दे दिया है। याचिका राजस्थान की एक इकाई द्वारा दायर की गई थी, जो चाहती है कि यह अधिकार केवल राज्य संघों के पास हो। इस मामले की सुनवाई के दौरान, ईएफआई ने एक असंबंधित दलील पेश की, जिसके कारण खेल की दुनिया में घुड़सवारी से जुड़े लोगों के बीच चर्चा शुरू हो गई।
एशियाई खेलों में भारत के लिए कांस्य पदक जीतने वाले पूर्व घुड़सवार राजेश पट्टू ने इस विचार को नकारते हुए कहा कि यह मुद्दा घोड़े के एथलीट होने या उपकरण होने से कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि यह भारतीय घुड़सवारी महासंघ के चुनावों से संबंधित नहीं है। पट्टू ने यह भी कहा कि ईएफआई को अदालत का समय बर्बाद करने के बजाय मुख्य मामले पर ध्यान देना चाहिए।
वहीं, ओलंपिक (तोक्यो 2021) में भाग लेने वाले पहले भारतीय घुड़सवार फवाद मिर्जा घोड़ों को एथलीट के रूप में देखने के पक्ष में हैं, लेकिन उन्होंने इसे कानूनी रूप से मान्यता देने से आने वाली जटिलताओं के बारे में भी चेतावनी दी। मिर्जा का कहना था, ‘‘मैं अपने घोड़े को एक उच्च श्रेणी के एथलीट के रूप में देखता हूं, लेकिन अगर आप उन्हें कानूनी रूप से एक व्यक्ति मानने की कोशिश करते हैं, तो यह स्थिति जटिल हो सकती है, क्योंकि वे आखिरकार जानवर हैं।’’
घुड़सवारी खेल की अंतरराष्ट्रीय संचालन संस्था, अंतरराष्ट्रीय घुड़सवारी महासंघ (एफईआई), एथलीट की परिभाषा में घोड़े को शामिल नहीं करता है। एफईआई के 2023 के कानून में एथलीट और घोड़े को अलग-अलग परिभाषित किया गया है। हालांकि, ईएफआई, जो एफईआई का सदस्य है, ने इटली से प्रेरणा ली है, जहां घोड़ों को कानून के माध्यम से एथलीट के रूप में वर्गीकृत किया गया था।
इस मुद्दे ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या घोड़े को कानूनी रूप से एथलीट मानना खेल और पशु कल्याण के बीच संतुलन को प्रभावित करेगा।