अशोक मिश्र
पानी के बिना हरियाणा के कुछ इलाके कराह रहे हैं। गर्मियों में पानी के लिए त्राहि-त्राहि मच जाती है। कुछ हिस्सों में भूगर्भ जल स्तर काफी नीचे चला गया है। प्रदेश सरकार हर संभव प्रयास कर रही है। उनके प्रयास कुछ हद तक रंग ला रहे हैं। शासन, प्रशासन बार-बार लोगों से अपील कर रहा है, पानी बचाओ, भूगर्भ जल का संरक्षण करो। कुछ लोग सुनते हैं, गुनते हैं और जल बचाने में जुट जाते हैं। कुछ लोग सुनकर भी अनसुना कर देते हैं। आपको याद दिला दें कि हड़प्पाकाल में भी हरियाणा धन-धान्य और जलस्रोतों से परिपूर्ण था। हिसार स्थित राखीगढ़ी और बनावली की खुदाई से पता चल चुका है। फतेहाबाद जिले में भिरड़ाणा और कुणाल इसके गवाह हैं। भिरड़ाणा की हवा, मिट्टी, पानी, पेड़-पौधे गुनगुनाते हुए अपने अतीत की कहानियां सुना रहे हैं। भिवानी जिले के मीताथल और हड़प्पा कालीन नगरों में बहुत सारे प्रमाण मिल जाएंगे। इंसानों की ही गलतियों की वजह से जीवनदायिनी सरस्वती नदी सूख गई। आज लाख सरस्वती का उद्गम क्षेत्र तलाशा जाए, उसे पुनर्जीवित करने की कोशिश किया जाए, लेकिन क्या पुरानी सरस्वती जैसी नदी हम पा सकेंगे।
हम अगर अपने पूर्वजों से उनके उत्थान और पतन का कारण नहीं जान सके, तो हम फिर वही गलती दोहराएंगे, जो उन्होंने की थी। प्राचीन काल में रचा गया पहला वेद ऋग्वेद, कौटिल्य का अर्थशास्त्र बताता है कि किस तरह हमारे देश में जल संरक्षित करने के लिए तालाब, जोहड़, बावड़ियां, कुएं खोदे गए थे। ताल-तलैयो में किस तरह उन्होंने वर्षा जल संग्रहित करके धरती की हरीतिमा को न केवल अक्ष्क्षुण रखा, बल्कि भूगर्भ जल को इंच भर भी कम होने नहीं दिया। हर घर का अपना कुआं होता था। यह बात हड़प्पा युगीन शहरों की खुदाई से पता चल चुका है। कौटिल्य का अर्थशास्त्र पढ़कर जाना जा सकता है कि उन्होंने पानी को मापने का न केवल पैमाना दिया, बल्कि पानी के उपयोग पर टैक्स भी निर्धारित किया। शायद यह जानकर आश्चर्य होगा। हड़प्पा काल से लेकर कुछ शताब्दियों पहले तक पूरे हरियाणा और पंजाब में जलस्रोतों की भरमार थी। पांच नदियों का प्रदेश कहा जाता था। हरियाणा में ही कुओं, नहरों, आबी और नदियों के जल को संचय करने की बड़ी समृद्ध परंपरा थी। आबी एक प्रकार का तालाब होता है जिसमें वर्षाजल संग्रहित किया जाता है। महाभारत काल में भी जब कुरुक्षेत्र में महाभारत चल रहा था, तब हजारों, लाखों सैनिकों, राजाओं, महाराजाओं को पीने, नहाने-धोने का पानी कहां से आया था। दूर-दूर से आए राजा-महाराजा अपने साथ पानी लेकर तो नहीं चले थे! यहीं कोई न कोई ऐसी व्यवस्था जरूर थी जिससे हजारों, लाखों लोगों के पीने, खाना बनाने, नहाने-धोने की जरूरत अट्ठारह दिन पूरी हुई थी।
अफसोस, हमने अपने पुरखों की गलतियों से सीख तो ली ही नहीं, जो भी जलस्रोत थे या तो उनका अंधाधुंध दोहन किया या फिर उनको खत्म ही कर दिया। अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार ली। नतीजा सामने है। हमारे प्रदेश में लगभग 6,885 गाँव हैं। राज्य के लगभग 41 प्रतिशत गांवों का भूजल स्तर संकट का सबब बन गया है। अन्य 18 प्रतिशत गांवों में भूगर्भ जल का संकट आसन्न है। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी और उनका पूरा मंत्रिमंडल पूरे प्रदेश घूम-घूमकर जल संरक्षण के लिए जागरूक कर रहे हैं। प्रदेश में कई वर्षों से ‘मेरा पानी मेरा विरासत’, हरियाणा सुजल योजना जैसी योजनाएं चलाई जा रही हैं। प्रदेश के गांव-गांव, शहर-शहर में पानी की बूंद-बूंद बचाने की अलख जगाई जा रही है। कुछ लोग जल का बहुत अपव्यय करते देखे जाते हैं। उन्हें रोकना होगा। यह राज्य के प्रति अपराध तो है ही, मानवता के प्रति भी अपराध है। घर का कोई भी सदस्य ऐसा करता मिले, जरूर टोकें।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
पानी बचाओ, नहीं तो कोसेंगी भावी पीढ़ियां
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