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मौन रहने वाले को अपने साथ महसूस होती है पूरी प्रकृति

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संजय मग्गू
प्राचीनकाल में हमारे ऋषियों, मुनियों और महापुरुषों ने जो कुछ पाया, वह एकांत में मौन रहकर ही पाया। यह सभी लोग एकांत की तलाश में वनों की ओर भागते थे क्योंकि शहरों में कोलाहल बहुत था। वह एकांत में रहकर आत्म साक्षात्कार करते थे। एकांत में रहने का यह मतलब नहीं है कि कुछ भी न सुनना। एकांत में रहकर मौन धारण करने का मतलब है अपने मन की सुनना। मन क्या चाहता है? यह जानना और समझना। मौन रहकर भी पक्षियों का कलरव सुना जा सकता है, नदियों की कलकल ध्वनि सुनी जा सकती है। प्रकृति का गायन और वादन सुना जा सकता है। एकांत में रहने की जरूरत इसलिए भी पड़ती है ताकि हम अपने दिमाग में भरी हुई तमाम स्मृतियों, बातों और नकारात्मकता को दरकिनार करके अपनी सुनें। यह एकांत हमें आध्यात्मिक शक्ति को संचित करने और उसे परिमार्जित करने में सहायता प्रदान करता है। मौन और एकांत एक दूसरे के सहायक हैं। एकांत में ही मौन साधना हो सकती है। मौन का महत्व हमारे जीवन में इतना ज्यादा है कि माघ की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाने लगा है और उस दिन मौन व्रत धारण करने की बात भी कही गई है। आज जब हमारे जीवन में एकांत की तनिक भी गुंजाइश नहीं बची है, ऐसी स्थिति में मौनी अमावस्या का महत्व बढ़ जाता है। हमारे जीवन में अकेलापन तो है, लेकिन मौन और एकांत सिरे से गायब हैं। सुबह उठते ही मोबाइल से लेकर तमाम तरह के सार्थक और निरर्थक कामों में उलझा व्यक्ति यह सोचकर ही घबरा जाता है कि वह पलभर भी निष्क्रिय कैसे रह सकता है। असल में वह यह जान ही नहीं पाता है कि एकांत में मौन रहने वाला व्यक्ति वाह्य रूप से भले ही निष्क्रिय प्रतीत होता हो, लेकिन आंतरिक रूप से वह अत्यंत सक्रिय होता है। मौन की दशा में व्यक्ति अपने आप को खोजता है, अपने आराध्य को खोजता है, अपने अस्तित्व के होने का कारण खोजता है और वह इस दुनिया में क्यों है, यह खोजता है। मौन रहना कोई समय की बरबादी नहीं है। इस मौन की भाषा जिसको समझ में आ गई, वह प्रकृति को बांच सकता है, उसकी व्याख्या कर सकता है। मौन एक शक्ति है, औषधि है। अवसाद, ब्लड प्रेशर, तनाव जैसे तमाम मानसिक और शारीरिक रोगों में मौन एक औषधि का काम करता है। यदि मनुष्य कुछ समय अपने दिमाग को खाली करके मौन धारण कर ले, तो ब्लड प्रेशर और तनाव में कमी ला सकते हैं। जीवन में, घर में, कोई कोना तो ऐसा होना ही चाहिए, जहां कोलाहल न हो। शांति हो, एकांत हो, जहां थोड़ी देर मौन होकर रहा जा सके। बस, अकेलापन नहीं होना चाहिए। अकेलापन दुखदायी है। भीड़ में भी अकेले रहने वाले व्यक्ति तमाम समस्याओं से घिरे रहते हैं। अकेले आदमी को भरा पूरा परिवार होने के बावजूद महसूस हो सकता है कि उसका अपना कोई नहीं है। लेकिन एकांत में मौन रहने वाले को पूरी प्रकृति अपने साथ महसूस होती है।

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