Saturday, March 15, 2025
25.1 C
Faridabad
इपेपर

रेडियो

No menu items!
HomeEDITORIAL News in Hindiसंन्यासी ने कहा, डरो मत! उनका सामना करो

संन्यासी ने कहा, डरो मत! उनका सामना करो

Google News
Google News

- Advertisement -

बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
किसी बात का भय जब तक दिमाग में रहता है, वह ज्यादा भयानक प्रतीत होता है, लेकिन जब उन परिस्थितियों का सामना किया जाए जिसकी वजह से भय पैदा हो रहा है, तो वह उतना भयानक नहीं लगता है। यह बात स्वामी विवेकानंद को बनारस में समझ में आई। स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता के एक कुलीन वैश्य  परिवार में हुआ था। घर और आसपास के लोग उन्हें बचपन में बिले नाम से पुकारते थे। थोड़ा जब वे बड़े हुए तो उनका नाम रखा गय नरेंद्र नाथ दत्त। बचपन में स्वामी विवेकानंद बहुत उत्साही और आध्यात्मिकता की ओर झुके हुए थे। स्कूली दिनों में वह संगीत, खेलकूद और शारीरिक कामों में बहुत रुचि लेते थे। वह जहां कहीं भी मंदिर देखते, तो उनका सिर श्रद्धा से झुक जाता था। एक बार वह किसी काम से बनारस आए हुए थे। वहां पर काली मंदिर देखकर उनके मन में देवी की आराधना करने का मन हुआ। उन्होंने थोड़ा सा प्रसाद खरीदा और मंदिर में दर्शन करने चले गए। जब वह मंदिर के बाहर निकले, तो वहां मौजूद बंदरों के झुंड ने उन्हें घेर लिया। उनके हाथ से प्रसाद की थैली छीनने का प्रयास करने लगे। मंदिर से निकलने वाले भक्तों के साथ बंदर ऐसा ही करते थे। बंदरों से घिरने पर स्वामी विवेकानंद डर गए और भागने लगे। कुछ दूर खड़े एक संन्यासी ने उन्हें रोका और कहा, रुको! डरो मत! उनका सामना करो। यह सुनकर स्वामी विवेकानंद रुक गए और बंदरों की ओर पलटे। विवेकानंद यह देखकर चकित रह गए कि उनके पलटते ही बंदरों का झुंड पीछे हटने लगा था। बस, फिर क्या था?  विवेकानंद ने उन बंदरों को खदेड़ दिया। स्वामी विवेकानंद ने सलाह देने के लिए उस संन्यासी को धन्यवाद दिया और बाद में यह कथा अपने शिष्यों को सुनाई।

- Advertisement -
RELATED ARTICLES
Desh Rojana News

Most Popular

Must Read

Recent Comments