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औषधियों की खोज में लगे रहते थे चरक

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बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
 भारतीय आयुर्वेद में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले राजवैद्य चरक पंजाब के कपिल स्थल नामक गांव में पैदा हुए थे। ऐसा माना जाता है। चरक कुषाण के राजवैद्य थे या कनिष्क के, इस पर भी मतभेद है। इसका कारण यह है कि कुषाण वंश की ही कई पीढ़ियों के बाद कनिष्क का शासन हुआ करता था। कुषाण वंश में ही कनिष्क पैदा हुआ था। ईसा पूर्व पहली शताब्दी से दूसरी शताब्दी तक कुषाण वंश का शासन रहा। चरक के गुरु अत्रि के पुत्र पुनर्वसु आत्रेय बताए जाते हैं। बात उन दिनों की है, जब चरक अपने गुरु पुनर्वसु के यहां शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। औषधि विज्ञान में उनकी रुचि देखकर गुरु उन पर विशेष ध्यान देते थे। शिष्य चरक भी कठोर पश्रिमी और अध्ययन मनन में काफी रुचि लेते थे। वह हमेशा कुछ न कुछ पढ़ते या औषधियों की खोज में लगे रहते थे। चरक की निष्ठा और लगन देखकर गुरु आत्रेय काफी प्रसन्न रहते थे। एक दिन उनके पैर में फोड़ा हो गया। कुछ दिन तक तो चरक फोड़े का दर्द बर्दाश्त करते रहे, लेकिन जब असहनीय हो गया, तो उन्होंने इसकी चर्चा अपने गुरु से की। गुरु आत्रेय ने कहा कि तुम्हारे इस फोड़े की औषधि तो जंगल में मिलेगी। यह सुनकर चरक जंगल की ओर चल दिए। काफी खोजने के बाद उन्हें अपने फोड़े को ठीक करने की औषधि नहीं मिली, लेकिन इस दौरान उन्होंने कई तरह की औषधियां मिलीं जिन्हें वह आश्रम में लेते आए थे। उन्होंने लौटकर अपने गुरु को बताया कि फोड़े की औषधि तो मिली नहीं। तब गुरु जी बोले, अरे! फोड़े की औषधि तो तुम्हारी कुटिया के पीछे उगी हुई है। चरक ने कहा कि गुरु जी, पहले क्यों नहीं बताया। आत्रेय ने कहा कि तुमने इस दौरान काफी कुछ सीखा। तुम सीखने की यह आदत हमेशा बनाए रखना।

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