संजय मग्गू
आज दुनिया के किसी भी देश में जब हमारे देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या राजनयिक जाते हैं, तो उन्हें कहा जाता है कि यह बुद्ध के देश से आए हैं। दुनिया का शायद ही कोई कोना ऐसा हो, जहां बुद्ध की बात न पहुंची हो। बुद्ध शायद पहले विचारक थे जिन्होंने अपने सभी उपदेशों में जीवन से ही सीख लेने की शिक्षा दी। उन्होंने जीवन को ही प्रमुख माना। कोई शास्त्र नहीं, कोई दर्शन नहीं। कोई आत्मा या परमात्मा की व्याख्या नहीं की। बस जीवन की व्याख्या में ही अपना जीवन गुजार दिया। जीवन की यह व्याख्या लोगों को इतनी पसंद आई कि सबके प्रिय हो गए तथागत। उनके जीवन की व्याख्या भारत के साथ-साथ दुनिया के कई देशों में फैल गई। सबके कल्याण के लिए उन्होंने एक ही बात कही कि वैर को वैर से नहीं खत्म किया जा सकता है। वैर और अहंकार ही मनुष्य के सबसे बड़े शत्रु हैं। इस संदर्भ में एक कथा कही जाती है। बुद्ध ने अपने एक शिष्य पूर्ण कश्यप से कहा कि तुम पूर्ण हो चुके हो। पूर्ण बुद्ध। अब तुम्हें हमारी कोई जरूरत नहीं है। मैंने अब तुम्हें जो दिया है, उसको दुनिया पर लुटा। अपने पास कुछ भी मत रख। नगर-नगर डोल, गांव-गांव जा और लोगों का कल्याण कर। शिष्य ने पूछा कि मैं कहां जाऊं? बुद्ध ने कहा कि यह तुम खुद ही तय करो। शिष्य ने कहा कि किस दिशा में जाऊं? बुद्ध ने कहा कि यह भी तुम ही तय करो। कुछ देर बाद बुद्ध ने शिष्य से पूछा कि तुम कहां जाओगे? शिष्य ने कहा कि बिहार में एक सूखा इलाका है, मैं वहां जाऊंगा। बुद्ध ने कहा कि तुम खतरा मोल ले रहे हो। वहां के लोग जंगली हैं। वहां किसी का स्वागत नहीं होता है। तुम्हें मारेंगे, पीटेंगे। पूर्ण ने कहा कि तब तो उन्हें मेरी सबसे ज्यादा आवश्यकता है। बुद्ध ने कहा कि वह लोग तुझे पीटेंगे। पूर्ण ने कहा कि पीटेंगे ही तो। कम से कम जान से तो नहीं मारेंगे। मैं यही सोचकर खुश रहूंगा। बुद्ध बोले, तुझे जान से मारे देंगे। पूर्ण ने कहा कि मैं तब भी प्रसन्न होऊंगा कि उन्होंने बड़ी दया की कि मुझे जीवन से मुक्त कर दिया। तब बुद्ध ने कहा कि जा, तू जा। तुझे कोई नहीं मार सकता है। जिसके मन में वैर न हो, वह दूसरे लोगों के प्रति दयावान ही होगा। वैर से वैर खत्म नहीं होता। अवैर से वैर खत्म होता है। अहंकार से दुनिया को नहीं सुधारा जा सकता है। दुनिया को रास्ता दिखाना है, तो निर-अहंकारी होना पड़ता है। जिसने अहंकार को जीत लिया, वह किसी से पराजित नहीं हो सकता है। अहंकार और वैर ही पराजय का कारण बनते हैं। जिसका मन निर्वैर हो, उसके प्रति लोग वैर रख सकते हैं, लेकिन वह किसी प्रति वैर नहीं रख सकता है। जाओ, पूर्ण जाओ, तुम दुनिया को रास्ता दिखाओ। ऐसा नहीं है जिस जगह तू जा रहा है, उस इलाके के लोग गाली नहीं देंगे, मारेंगे नहीं, जान से मारेंगे नहीं, लेकिन तुझे कोई नहीं मार सकता है। तू अब अमृत है। अमृत का शरीर तो जरूर नष्ट होगा, लेकिन तू नष्ट नहीं होगा। इसके बाद महात्मा बुद्ध का वह शिष्य सचमुच वहां से डोल गया।
मनुष्य के सबसे बड़े दुश्मन हैं वैर और अहंकार
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