कोई भी सरकार अगर आम जनता को किसी तरह की सुविधा देती है, तो विभागीय अधिकारियों एवं कर्मचारियों को अक्सर लगता है कि जैसे उनके पास से कुछ जा रहा है। वह चाहे सरकारी राशन का मामला हो, निराश्रित एवं वृद्धावस्था पेंशन का मामला हो या फिर छात्रों को वजीफे का, हर सुविधा में जबरन टांग अड़ाना अमले ने अपना हक समझ लिया है। ताजा मामला राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली का है, जहां डीटीसी के एक चालक को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने महज इस बात के लिए सस्पेंड कर दिया, क्योंकि उसने स्टॉप पर महिलाओं द्वारा हाथ दिए जाने के बावजूद बस नहीं रोकी। उसकी इस मनमानी का वीडियो वायरल होते ही शासन में हड़कंप मच गया। सीएम केजरीवाल को स्वयं आगे आकर एक्शन लेना पड़ा।
मालूम हो कि दिल्ली सरकार ने डीटीसी की बसों में महिलाओं को मुफ्त यात्रा की सुविधा दे रखी है, यह सोचकर कि हर महिला कामकाजी नहीं होती, सो उसके पास पैसे होने का सवाल पैदा नहीं होता। और जो कामकाजी महिलाएं हैं, उनकी आय भी कोई खास नहीं होती, सरकारी नौकरी को छोड़कर। यह फैसला लेते समय आम आदमी पार्टी सरकार का मानना था कि यात्रा खर्च अगर बच जाएगा, तो महिलाएं उसका सदुपयोग ही करेंगी। ध्यान रहे, यहां हम मुफ्त जन सुविधाओं की वकालत हरगिज नहीं कर रहे हैं। किसी भी सरकार के किसी फैसले के लाभ-हानि के बारे में सोचने से पहले उसके पीछे छिपी नीयत पर भी नजर डालनी चाहिए।
केजरीवाल सरकार का यह फैसला सियासी दलों को पसंद नहीं आया। अब तो डीटीसी के कर्मचारी भी महिलाओं को मिली इस सुविधा के खिलाफ मनमानी करने पर उतर आए हैं। मालूम हो कि डीटीसी की बसों में चलने वाला ज्यादातर स्टाफ सवारियों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करता है। परिचालक अपनी सीट पर बैठे-बैठे टिकट बनाते हैं, जबकि नियम यात्री की सीट पर जाकर टिकट बनाने का है। ज्यादातर अधिकारी-कर्मचारी अपने वर्क प्लेस पर यह सोचकर पहुंचते हैं कि आठ घंटे का समय उन्हें किसी न किसी तरह व्यतीत करना है, मौका मिलने पर बहती गंगा में हाथ धोना है और वेतन तो उनका जन्मसिद्ध अधिकार है। लेकिन, वे यह भूल जाते हैं कि उनकी इस अकर्मण्यता, कामचोरी, लापरवाही और मनमानी सरकार पर बहुत भारी पड़ती है।
संजय मग्गू