राजनीति का आधार भावुक मन की निष्कपट भूमि नहीं है। वह बुद्धि के व्यायाम पर चला करती है। संसार कहता है-भाषा भावनाओं को व्यक्त करने का साधन है। राजनीति में यही भाषा मन की वास्तविक भावनाओं को अव्यक्त करने का साधन बनती है। राजनीतिज्ञ का मन जंगली चूहे के बिल जैसा होना चाहिए। यानी, यह किसी को पता नहीं चलना चाहिए कि वह बिल कहां से शुरू होता है और कहां जाता है। इस मानसून सत्र में यह प्रकरण बड़ा ज्वलंत रहा, जिसमें केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी बहुत ही गंभीरता से उठाई थी और लंबे समय तक देश में सार्वजनिक स्थानों पर हंसी का पात्र बनती रहीं। स्मृति ईरानी ने आरोप लगाया कि राहुल गांधी ने अपनी बात खत्म करने के बाद ‘फ्लाइंग किस’ दिया, जो संसदीय गरिमा के अनुकूल नहीं रहा और जिस पर उन्होंने संसद में चर्चा तो की ही, अध्यक्ष तक को अपनी लिखित शिकायत के साथ—साथ महिला सांसदों के हस्ताक्षर से युक्त राहुल गांधी के खिलाफ कारवाई करने की भी मांग की।
स्मृति ईरानी जिस प्रकार संसद में और संसद के बाहर मुखर रहती हैं, उतनी मुखर यदि वह ब्रजभूषण शरण सिंह के विरुद्ध महिला खिलाड़ियों की ओर से मुखर होतीं, तो कोई शक नहीं कि आज समाज उन्हें महिला संरक्षक के रूप में पूजनीय मानता, लेकिन नहीं, उन्हें अपनी खुन्नस तो राहुल गांधी से निकालनी है। सच तो यह है कि उनका आत्मबल बढ़ा ही इसलिए है कि उन्होंने उनके ही संसदीय क्षेत्र में हराकर जीत का परचम लहराया। अब जब अमेठी की जनता को अपनी गलती का अहसास होने लगा है, तो इसकी जानकारी स्मृति ईरानी को उनके सूत्रों ने निश्चित रूप से दी होगी, तो निस्संदेह उन्हें अपना भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा होगा। इसलिए वह देश के किसी भी मंच से राहुल गांधी की बुराई करके क्षेत्र की जनता को यह विश्वास दिलाने की कोशिश करने लगी हैं कि राहुल गांधी नकारे थे।
निश्चित रूप से राहुल गांधी का कद तो देश की राजनीति में पिछले वर्ष उनके द्वारा 4000 किमी की भारत जोड़ो पदयात्रा से बढ़ी है। यह यात्रा जो कन्याकुमारी से कश्मीर तक की थी, ऐतिहासिक भी रही, से राहुल की छवि राष्ट्र के कद्दावर नेता के शुमार में हो गया। अब जब राहुल गांधी की प्रस्तावित दूसरी भारत जोड़ो यात्रा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्मस्थान पोरबंदर से अरुणाचल प्रदेश के लिए निकलेगी, तो फिर इसका अनुमान देश के बड़े—बड़े राजनीतिक विचार व्यक्त करने लगे हैं कि उसके बाद राहुल गांधी का कद कितना ऊंचा हो जाएगा। वैसे भी जो जानकारी और सर्वेक्षण रिपोर्ट आ रही है उसके हिसाब से 2024 का लोकसभा चुनाव कांटे की टक्कर का होगा, जिसमें पलड़ा विपक्ष का ही भारी बताया जा रहा है। अभी तक तो जिस तरह से इंडिया गठबंधन के 26 दलों का जोश और एकता दिखाई दे रही है, उससे सत्तारूढ़ का विचलित होना यही संदेश देता है कि सत्तारूढ़ दल परेशान है। कहते हैं देश के संसद रूपी पवित्र मंदिर में कोई असत्य नहीं बोलता, लेकिन अब ऐसा नहीं होता। अब संसद सदस्यों की कौन कहे, मंत्री भी आंख में आंख डालकर असत्य भाषण देते हैं और संसदीय गरिमा की हंसी उड़ाते हैं। इस अविश्वास प्रस्ताव का दौरान भी और मंत्रियों की कौन कहे, गृहमंत्री ने राहुल गांधी को लपेटे में लेने के लिए और कांग्रेस का उपहास उड़ने के नाम पर कलावती नामक महिला का उल्लेख किया और कहा कि कांग्रेस शासनकाल में सब आश्वासन देने के बाद भी उस परिवार का कुछ भी भला नहीं किया गया, लेकिन मोदी सरकार ने उस परिवार की पूरी मदद करके उसके जीवन स्तर को सुधार दिया। जबकि, यह सच नहीं था। इसका खंडन स्वयं कलावती ने कई टेलीविजन चैनलों पर आकर किया। महाराष्ट्र की कलावती का कहना है कि उनके जीवन को संवारने में कांग्रेस की और विशेषरूप से राहुल गांधी की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण रही है और आज वह जो कुछ भी है, उसमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण भूमिका राहुल गांधी की ही रही है। पता नहीं क्यों अपना महत्व बढ़ाने के लिए देश के सबसे शक्तिशाली मंत्री तक असत्य भाषण संसद में करते हैं।
निशिकांत ठाकुर