बिहार के गया शहर की उपमहापौर, चिंता देवी (Chinta Devi) जो वर्षों तक नगर निगम में सफाईकर्मी के रूप में कार्यरत रहीं, अब सड़कों पर सब्जियां बेचने को मजबूर हैं। उन्होंने यह कदम उपमहापौर के पद पर रहते हुए नगर निगम प्रशासन के साथ हो रहे अपने अनादर के विरोध में उठाया है। चिंता देवी ने एक समय यह महसूस किया था कि उन्हें “मोक्ष की नगरी” ने मुक्ति दी है, लेकिन अब वह अपनी स्थिति को लेकर बेहद परेशान हैं।
चिंता देवी (Chinta Devi) ने 35 वर्षों तक गया नगर निगम में सफाईकर्मी के रूप में कार्य किया था। इसके बाद, दिसंबर 2022 में वह उपमहापौर चुनी गईं, लेकिन लगभग दो वर्षों तक पद पर रहते हुए उन्हें नगर निगम प्रशासन से कोई सहयोग नहीं मिला। वह खुद कहती हैं, ‘‘मेरे उपमहापौर बनने का क्या मतलब है, अगर मुझे नगर निगम की योजनाओं के बारे में जानकारी नहीं दी जाती?’’ उनका आरोप है कि निगम की बैठकों में भी उन्हें नहीं बुलाया जाता और नगर निगम के अधिकारी उन्हें शहर की योजनाओं के बारे में जानकारी नहीं देते हैं।
चिंता देवी (Chinta Devi) ने यह भी कहा कि उन्हें पिछले कई महीनों से उपमहापौर का वेतन नहीं दिया गया है, जिसके कारण उन्हें सब्जियां बेचने का निर्णय लेना पड़ा। वह कहती हैं, ‘‘बिना किसी काम के नगर निगम दफ्तर में बैठने से बेहतर है कि मैं सब्ज़ियां बेचूं।’’ उनके अनुसार, वह सब्ज़ी बेचकर पैसे कमा सकती हैं, भले ही उन्हें नगर निगम के सेवानिवृत्त कर्मचारी के रूप में पेंशन मिलती हो, लेकिन निगम द्वारा उन्हें कोई सुविधा नहीं दी जा रही है, जिसकी वह उपमहापौर होने के नाते हकदार हैं।
चिंता देवी (Chinta Devi) का सब्जी बेचने का निर्णय लोगों के लिए हैरान करने वाला था, और मंगलवार को केदारनाथ बाजार में जब उन्हें सब्जी बेचते देखा गया, तो आसपास भारी भीड़ जमा हो गई। उनके इस कदम ने नगर निगम प्रशासन और नेताओं के लिए गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं कि प्रशासन अपने कर्मचारियों और पदाधिकारियों के साथ उचित व्यवहार क्यों नहीं कर रहा है।
गया नगर निगम के वरिष्ठ अधिकारियों ने देवी द्वारा लगाए गए आरोपों पर अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। हालांकि, चिंता देवी का यह कदम न केवल उनके व्यक्तिगत संघर्ष को उजागर करता है, बल्कि यह भी सवाल खड़ा करता है कि क्या अधिकारियों द्वारा महिला नेताओं के साथ समान व्यवहार किया जाता है।
अन्य खबरों के लिए क्लिक करें Deshrojana.com