liquor ban Bihar: पटना उच्च न्यायालय ने शराबबंदी कानून के तहत पुलिस द्वारा लापरवाही बरतने पर एक पुलिस निरीक्षक के खिलाफ हुए डिमोशन के आदेश को रद्द कर दिया। न्यायमूर्ति पूर्णेंदु सिंह ने टिप्पणी करते हुए कहा कि शराबबंदी कानून से पुलिस और अन्य अधिकारी अपनी कमाई करते हैं और तस्करों के साथ मिलकर काम करते हैं। उन्होंने कहा कि यह कानून केवल गरीबों के लिए मुश्किल पैदा करता है जबकि अधिकारी इसे अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करते हैं।
यह आदेश मुकेश कुमार पासवान की याचिका के जवाब में आया। मुकेश पासवान पटना बाईपास थाने में थानाध्यक्ष थे और उन्हें राज्य के आबकारी विभाग के अधिकारियों द्वारा छापेमारी के दौरान विदेशी शराब की बरामदगी के बाद निलंबित किया गया था। बाद में, राज्य सरकार ने 2020 में उनका पदावनत कर दिया था, हालांकि उन्होंने अपनी बेगुनाही का दावा किया था।
पटना उच्च न्यायालय ने कहा कि शराब तस्करी में शामिल लोगों के खिलाफ बहुत कम कार्रवाई होती है, जबकि गरीब लोग जो शराब का सेवन करते हैं या जिनका इसके कारण नुकसान होता है, उनके खिलाफ अधिक मामले दर्ज होते हैं। अदालत ने यह भी कहा कि शराबबंदी कानून का उद्देश्य सार्वजनिक स्वास्थ्य को सुधारना था, लेकिन इसके कारण गरीबों को ही अधिक नुकसान हो रहा है।
अदालत ने यह भी पाया कि जांच में दोषपूर्ण कार्यवाही की गई, जिससे तस्करों के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं जुटाए जा सके। इसलिए, उच्च न्यायालय ने न केवल मुकेश पासवान के खिलाफ विभागीय कार्यवाही को रद्द कर दिया, बल्कि उनके पदावनत आदेश को भी खारिज कर दिया।
अदालत ने यह भी कहा कि विभागीय कार्यवाही केवल औपचारिकता बनकर रह गई है और इसके कारण माफिया के खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।