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भविष्य बताएगा अब क्या होगा आम आदमी पार्टी का भविष्य

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संजय मग्गू
जब कोई राजनीतिक दल किसी विचारधारा से बंधा हुआ नहीं होता है, तो उसका बहुत अधिक समय तक अस्तित्व में बना रहना मुश्किल होता है। याद कीजिए अप्रैल 2011 का वह दौर, जब दिल्ली में अन्ना हजारे यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ हुंकार भर रहे थे। अन्ना आंदोलन को हवा देने वालों में अरविंद केजरीवाल, स्वराज इंडिया के योगेंद्र यादव, भगवाधारी रामदेव और स्वामी अग्निवेश, वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण तो थे ही, पीछे से संघ से जुड़ा विवेकानंद फाउंडेशन भी उस आंदोलन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा हुआ था। किस तरह अन्ना हजारे आंदोलन खत्म हुआ, वह दूसरा मुद्दा है, लेकिन आंदोलन के चलते पूरे देश में सड़कों पर उतरी जनता को देखकर अन्ना टीम के ही कुछ सदस्यों में राजनीतिक महत्वाकांक्षा ने जन्म लिया। इसके चलते अन्ना टीम बिखर गई और अत्यंत महत्वाकांक्षी अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी का गठन हुआ। अब सवाल यह उठा कि आम आदमी पार्टी का वैचारिक आधार क्या हो? चूंकि आम आदमी पार्टी यानी आप का जन्म ही आंदोलन के दौरान हुआ था, उसे सड़कों पर उतरने, धरना-प्रदर्शन करने का ही अनुभव था। अन्ना आंदोलन भी कोई विचार धारा को लेकर तो चला नहीं था, वह तो भाजपा और संघ का एक हथियार था जिसे अन्ना की आड़ में यूपीए सरकार के खिलाफ चलाया गया था। ऐसी स्थिति में आप ने शुरुआत में भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर ही चुनाव लड़ा। पहले थोड़ी सफलता मिली, कांग्रेस ने समर्थन दिया। बाद में समर्थन वापसी के बाद जब चुनाव हुए, तो आप को मिली अभूतपूर्व सफलता ने मानो एक नई किस्म की राजनीति को जन्म दे दिया था। दूसरी बार सत्ता में आने के पीछे आम आदमी पार्टी का मतदाताओं से किए गए लोक लुभावन वायदे थे। इसी के दम पर केजरीवाल अपनी राजनीति की गाड़ी को खींचते रहे। भाजपा की ही छत्रछाया में पैदा हुई आम आदमी पार्टी अपने को अलग दिखाने के लिए वैचारिक रूप से हिंदुत्व का चोला नहीं धारण किया। कांग्रेस की तरह वह सेक्युलर छवि अपनी पार्टी की बना नहीं पाए। शुरुआती दौर में थोड़ा बहुत वामपंथी विचारधारा वाले जो लोग आपसे जुड़े थे, उन्हें भी केजरीवाल ने झटक दिया। वैचारिक प्रतिबद्धता के अभाव वाली पार्टी को आखिर कब तक लोग सहन करते, सिर्फ चुनावी रेवड़ी बांटकर आप अधिक दिन तक सत्ता पर नहीं बने रह सकते हैं।भाजपा की अपनी एक निश्चित विचारधारा है। कांग्रेस ने भी आजादी के बाद एक लीक पकड़ ली थी। राहुल गांधी तो खुले आम कांग्रेस और भाजपा के बीच विचारधारा की लड़ाई कहते हैं। वामपंथी पार्टियों की भी एक सुनिश्चित विचारधारा है। सपा समाजवाद का झंडा उठाए है, तो बसपा आंबेडकरवाद का। आप को छोड़कर देश की लगभग सभी राष्ट्रीय या क्षेत्रीय पार्टियां किसी न किसी विचारधारा से जुड़ी हुई हैं। सबके अपने-अपने आदर्श पुरुष और वाद हैं। अब आम आदमी पार्टी का क्या होगा, यह भविष्य के गर्भ में है।

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