कला एक अबूझ पहेली है जिसे हल करने के प्रयास में एक कलाकार अज्ञान से पथ पर चलते हुए अनंत की यात्रा पर होता है। हां, भटकते हुए कुछ विशेष शैलियों का साथ जरूर मिल जाता है और इसी विशेष के चलते या विशेष के साथ सफर में अपनी एक अलग शैली भी इजाद हो जाती है और कलाकार अपने विषय एवं शैली के लिए जाना जाने लगता है। ‘कलाकार कृतियों का सृजन स्वांत: सुखाय हेतु करता है, दर्शक उससे जुड़ पाता है या नहीं। समाज उससे कुछ ग्रहण कर पाता है या नहीं, ये एक अलग विषय है।’ ऐसा कहना है युवा कलाकार ओमप्रकाश मिश्र का जिनकी कृतियों में अध्यात्म एवं धार्मिक कथाएं हैं। जिनके रंग चटख और आंखों को खुश रखने वाले हैं। जिनकी कृतियां लययुक्त कविता की भांति हैं। राम चरित मानस का निरंतर पाठ जिनकी दिनचर्या है, जिनके कृतियों में लोक कला रूपी आत्मा है जो बचपन में देखे गये रामलीला के चरित्रों से संभव हो सका है और जिसके चलते ही कलाकार आज अपने विशेष सफर पर हैं।
कलाकार ओमप्रकाश, जिनके पिता एक अच्छे अधिवक्ता रहे हैं, के दादा इन्हें पिता से भी अच्छा अधिवक्ता बनाना चाहते थे पर इनकी रुचि बचपन से ही कला में थी। संयुक्त परिवार, परिवार के संस्कार का फल रहा कि न चाहते हुए भी बीए करना पड़ा। बेमन का कार्य फलता नहीं है। इनका भी नहीं फला। लगातार कम नंबर आते रहे, परिवार पसीज गया और कला में ही दाखिला दिलवा दिया गया। ललित कला में अध्ययनरत होते ही पंख फड़फड़ा उठे, खिल उठे अरमां और आप निरंतर प्रगति पथ पर बढ़ते गये।
कॉलेज में शिक्षक, निजी कंपनी में क्राफ्ट जैसे कार्यों में खुद को मशीन और मजदूर बनते देख यहां से त्यागपत्र दे दिया। बाद में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में आईफा से जुड़ गए। साथ ही कलाकर्म में भी लगे रहे, पर कला में कुछ विशेष न कर पाने की वजह से थोड़े दुखी रहने लगे। एक बार अपने पदम गुरु जी के कहने पर आप स्व की खोज में जा लगे। निरंतर स्व की खोज में आपको अपनी जड़ अध्यात्म से जुड़ी हुई मिली। धार्मिक ग्रंथों विशेषत: राम चरित मानस को पढ़ते हुए कुछ घटनाएं जो मन को छू जाती हैं, मन के भीतर किसी कोने में जाकर बैठ जाती हैं और लगातार मन को मथती रहती हैं वही आपके कृतियों में उतर आती हैं।
आपके पात्र भी खुद के गढ़े हुए हैं जो बचपन में देखे गये रामलीला से प्रभावित रहे हैं, जिसके बदौलत लोक कला का रूप संभव हो सका। जब कहीं भी भगवान राम से संबंधित कृतियों की चर्चा होती है, कलाकार ओमप्रकाश को जरूर याद किया जाता है। तीस से अधिक एकल एवं सामूहिक प्रदर्शनियों में आपकी कृतियां प्रदर्शित हो चुकी हैं, पुरस्कार भी निरंतर मिलते रहे हैं।
सुभारती के ललित कला विभाग से भी आप जुड़े रहे। फिलहाल आप मिनर्वा इंस्टीट्यूट देहरादून में विभागाध्यक्ष पद पर कार्यरत हैं। एक्रेलिक, मिक्स मीडिया, चारकोल तथा वास पद्धति में कार्य करते हुए आप निरंतर सफर में हैं। कृति ‘हंगर’ में रंगों के कई रूप दर्शित हैं विषय विशेष है, चरित्र लोक शैली में है। आपकी अधिकतर कृतियों में शिव और हनुमान जी एकाकार अवस्था में भी दिखाई पड़ते हैं जिसके पीछे आपका अपना पूरा विचार है जो भाव को स्पष्टत: व्याख्यायित भी करता है। कृतियों में निर्मित पात्र, उनके रंग और वस्त्रों पर सजी छोटी-छोटी आकृतियां भी पूरी कहानी लिए हुए हैं। आपकी कृतियों को देखने हेतु आध्यात्मिक नजर की आवश्यकता है।
जहां रंग, रूप, रेखा को अनंत गहराइयों तक अनुभव किया जा सकता है। एक कृति में काकभुशुण्डि के ऊपरी ज्ञान तथा हनुमान के अनंत गहराइयों वाले ज्ञान एवं ज्ञान प्राप्ति के प्रबल इच्छा का तुलनात्मक अध्ययन हुआ है, जहां सभी भाइयों सहित श्रीराम तथा कमल के फूल का संयोजन भी गजब का है। पूरा कथानक समझ लेने के बाद इस कृति का महत्व और भी बढ़ जाता है। जहां मनुष्य को तितलियों की भांति उड़ते एवं भटकते हुए दिखाया गया है वहीं हनुमान भगवान श्री राम के चरणों में स्थान प्राप्त कर उनके प्रिय भक्त बन गये हैं। 1 जनवरी 1987 को सोनभद्र में जन्मे कलाकार ओम प्रकाश अपने गंभीर कृतियों के साथ ही गंभीर व्यक्तित्व हेतु भी पहचाने जाते हैं। कृति ‘तांडव’ में रौद्र रूप की झलक स्पष्ट है। ‘प्रोटेक्शन आॅफ यज्ञ’ कृति में लोक शैली जैसे चरम पर पहुंच गया है, पृष्ठभूमि में बिखरे रंग फूल पत्तियों के साथ सभी कुछ पूर्णत: देशज बन पड़ा है।
पंकज तिवारी