कल देश में दो बड़े घटनाक्रम हुए। दोनों आपस में जुड़े हुए हैं। पहला नये संसद भवन का उद्घाटन था और दूसरा महिला पहलवानों के साथ जो व्यवहार सामने आया, उससे मुंह से एकदम यही निकला-तारे जमीन पर! बल्कि सितारे जमीन पर! ये महिला पहलवान अपना विरोध व्यक्त करने नए संसद भवन की ओर कूच कर रही थीं कि पुलिस ने न केवल इन्हें रोका, बल्कि सड़क पर घसीटा भी। इन पर बल प्रयोग किया गया। इनके शिविर तक उखाड़ फेंके। लोग तो यहां तक कहते हैं कि कहीं से इशारा रहा होगा कि इनके शिविर को तहस नहस कर दो। पूरे इलाके में धारा 144 भी लगा दी गई। जबकि विनेश फौगाट, साक्षी मलिक और बजरंग पूनिया वही लोग हैं जिन्होंने पहलवानी को नई ऊंचाइयां प्रदान की और देश व तिरंगे का गौरव बढ़ाया।
अब भी लोग तो वही थे जिन्होंने मान बढ़ाया था, तिरंगा भी वहीं था और देश की राजधानी भी वही थी, लेकिन दृश्य बिल्कुल अलग था। तिरंगे को थामे विनेश और साक्षी को घसीटती हुई ले जा रही थी पुलिस। ओह! बहुत ही शर्मनाक दृश्य था वह। लोगों को यह सब कुछ अच्छा नहीं लगा। इस दृश्य को देखकर सच में दुष्यंत कुमार का शेर बेसाख्ता याद आया-
कैसे-कैसे मंजर सामने आने लगे हैं
गाते गाते लोग चिल्लाने लगे हैं!
क्यों विनेश, साक्षी और बजरंग को इस हालत में पहुंचाया गया? क्या कसूर है इनका? बस, कुश्ती संघ के पूर्वाध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह की कथित गंदी हरकतों और सोच को सामने लाना? यौन उत्पीड़न के आरोप लगाना? क्या बेटियां इतना भी विरोध न करें? खामोशी से सहन करती रहें? कहां जाएं अपनी फरियाद लेकर? दूसरी ओर हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश से महापंचायत में शामिल होने आ रहे लोगों को भी हिरासत में ले लिया गया। उन्हें जबरन गाड़ियों से उतार कर हिरासत में लिया गया। हिसार में ही नेशनल हाईवे पर कितनी बसें रोकी गईं और देर शाम छोड़ा गया। क्या सरकार किसान आंदोलन के तजुर्बे को भूल गई? किस तरह कीलें ठोंक कर रास्ते रोके गए थे लेकिन आंदोलन नहीं रुका था। फिर से वही गलती दोहराई जा रही है। इन बेटियों ने तो सम्मान की लड़ाई शुरू की थी और वह भी अपने इस मान के साथ कि हमारे प्रधानमंत्री हमारे मन की बात समझते हैं और बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के पैरोकार हैं लेकिन वे मुगालते में रहीं।
23 अप्रैल से शुरू हुआ, यह धरना प्रदर्शन आज धक्कामुक्की और सड़क पर घसीटने तक पहुंच गया है और तिरंगे के साथ सड़क पर घसीटता महिला पहलवान का चेहरा बहुत ही दुख दे रहा है। लोग इस पर कई तरह की प्रतिक्रिया दे रहे हैं। यह फोटो इतनी वायरल हुई कि बच्चा बच्चा पहचान गया। क्या इससे देश की छवि धूमिल नहीं हुई? क्या ये बेटियां आपको कुछ नहीं कह रहीं? ये कहना बहुत कुछ चाहती हैं लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है।
साक्षी मलिक का कहना है कि पुलिस ने कूच को हिंसक संघर्ष में बदलने की कोशिश की है, जबकि विनेश फोगाट की प्रतिक्रिया है कि हमें इस भारत की उम्मीद बिल्कुल नहीं थी। यौन शोषण का आरोपी खुले में घूम रहा है और हम महिला पहलवानों पर जुल्म ढाये जा रहे हैं। आरोपी को बचाने के लिए देश से ऊपर हठधर्म दिख रहा है। हमें इस नए भारत की उम्मीद बिल्कुल भी नहीं थी। बजरंग का कहना है कि पुलिस खेल रत्न और पद्मश्री को घसीट रही है। अरे! ये पुलिस का डंडा है और कानून की देवी अंधी है जो कुछ नहीं देखती। न पद्मश्री और न खेल रत्न। यह कोई कानून का डंडा थोड़े है बजरंग।
दूसरी ओर बृजभूषण शरण सिंह की नेक सलाह है कि धरने की जिद्द छोड़कर घर जाएं और जांच पर भरोसा रखें। वैसे लगता है कि जितने आत्मविश्वास से बृजभूषण भरे हैं, उन्हें जांच का परिणाम पहले से ही पता है और वे जांच पर इसीलिए भरोसा किए आराम से बैठे हैं। दिल्ली महिला आयोग ने भी इस पुलिस कार्रवाई की जांच की मांग की है ।नए संसद भवन का उद्घाटन भी विवादों से भरा रहा। विपक्ष ने लोकतंत्र के इस नए मंदिर के उद्घाटन का विरोध किया कि राष्ट्रपति इसका उद्घाटन करें न कि प्रधानमंत्री। विपक्ष बाहर रहा और अंदर शंखनाद हो गया!
इस तरह तारे जमीन पर और विपक्ष बाहर!
क्या क्या देखने को मिल रहा है! क्या क्या देखना बाकी है ?
कमलेश भारतीय