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अन्नाद्रमुक से अलगाव में भाजपा को ही घाटा

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अंतत: एनडीए से एआईएडीएमके यानी अन्नाद्रमुक ने भी नाता तोड़ लिया। एआईएडीएमके भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए का साथ छोड़ने वाली चौथी पार्टी है। इससे पहले एनडीए से शिवसेना बाहर हुई, इसके बाद शिअद और फिर जदयू ने नाता तोड़ा।

अन्नाद्रमुक के भाजपा का साथ छोड़ने के साथ ही दक्षिण भारत में भाजपा को अब अपना पांव जमाना थोड़ा कठिन हो गया है। अन्नाद्रमुक के कार्यकर्ताओं ने अलग होने की घोषणा के बाद जिस तरह जश्न मनाया है, उससे साफ जाहिर है कि वह भाजपा से अपना पीछा काफी दिनों से छुड़ाना चाहती थी।

इसके पीछे तमिलनाडु भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के अन्नामलाई के बयान जिम्मेदार रहे हैं। पिछले एक-डेढ़ साल से भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अन्नामलाई लगातार जय ललिता और कांजीवरम नटराजन अन्नादुराई के खिलाफ बोलते रहे हैं। यह अन्नाद्रमुक के समर्थकों को बहुत बुरा लगता रहा है।

सीएन अन्नादुराई तमिलनाडु के पहले कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे जिन्हें हिंदी विरोध और तमिलनाडु के हितों के लिए लड़ने पर जेल जाना पड़ा था। अन्नादुराई राजकाज में क्षेत्रीय भाषा के पक्षपाती थे। आधुनिक तमिलनाडु के निर्माता के नाम से पहचाने जाने वाले अन्नादुराई को वहां की जनता आज भी बहुत मानती है।

पत्रकार, लेखक और राजनीतिज्ञ के रूप में अपनी पहचान बनाने वले अन्नादुराई को मद्रास राज्य का नया नाम तमिलनाडु रखने का श्रेय दिया जाता है। ऐसी स्थिति में बार-बार भाजपा नेताओं द्वारा अन्नादुराई और जयललिता के खिलाफ बयान देना किसी भी हालत में भा नहीं रहा था।

बीते शुक्रवार को भी अन्नाद्रमुक के वरिष्ठ नेता का एक प्रतिनिधिमंडल भाजपा नेतृत्व से मिला था, लेकिन भाजपा ने उन्हें महत्व नहीं दिया। इससे नाराज अन्नाद्रमुक ने अंतत: भाजपा से अलग होने का फैसला कर ही लिया। उधर, तमिलनाडु में मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे उदयगिरि स्टालिन ने सनातन धर्म को लेकर विवाद खड़ा कर दिया है जिससे तमिलनाडु के लोग भाजपा के खिलाफ खड़े हो रहे हैं।

वहीं, अन्नाद्रमुक का मानना है कि यदि उसने भाजपा से गठबंधन नहीं किया होता, तो वर्ष 2021 में हुई विधानसभा चुनाव में उसकी स्थिति अच्छी होती। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि विधानसभा चुनाव के दौरान वहां की जनता अन्नाद्रमुक के खिलाफ उतनी नहीं थी जितनी कि भाजपा के खिलाफ।

उन दिनों भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ जनता की नाराजगी साफ नजर आ रही थी। भाजपा से गठबंधन का नुकसान अन्नाद्रमुक को उठाना पड़ा और डीएमके यानी द्रमुक को विधानसभा चुनाव में इसका लाभ मिला।

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि आगामी लोकसभा चुनाव में मुकाबला अब दो कोणीय नहीं, त्रिकोणीय होगा। अन्नाद्रमुक और भाजपा के अलग होने का फायदा डीएमके को मिलना तय है।

एंटी इंकंबेसी वोट भाजपा और अन्नाद्रमुक में बंटने से जीतने के आसार इंडिया गठबंधन के ज्यादा नजर आ रहे हैं। हां, अब अन्नाद्रमुक अपने परंपरागत वोटबैंक से फिर जुड़ने की कोशिश करेगी। इसमें अल्पसंख्यक भी शामिल हैं।

संजय मग्गू
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