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इजरायल के खिलाफ संगठित होते अरब इस्लामिक देश

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संजय मग्गू
अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के बाद ही यह संभावना जाहिर की जा रही थी कि यूक्रेन-रूस और गाजा-इजरायल के बीच चल रहे युद्ध थोड़ी बहुत तस्वीर बदलेगी। लेकिन इतनी जल्दी इसके प्रयास शुरू हो जाएंगे, यह कयास नहीं लगाया जा रहा था। ट्रंप तो जनवरी में राष्ट्रपति का पदभार ग्रहण करेंगे, लेकिन सोमवार को सऊदी अरब की राजधानी रियाद में क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के नेतृत्व में 50 अरब इस्लामिक देशों के समिट ने यह बता दिया है कि बहुत जल्द मध्य पूर्व के हालात बदलने वाले हैं। जिन दिनों गजा और इजरायल युद्ध को रोकने के लिए यूरोपियन यूनियन प्रयास कर रहा था, उन दिनों अरब इस्लामिक देशों ने चुप्पी साध रखी थी, लेकिन सोमवार को हुए अरब-इस्लामिक देशों के समिट में जिस तरह लगभग सभी देशों ने फलस्तीन को समर्थन दिया और इजरायल द्वारा किए जा रहे हमले को नरसंहार बताया है, उससे ऐसा प्रतीत होता है कि अब अरब देशों ने इजरायल को अलग-थलग करने का मन बना लिया है। अरब इस्लामिक देशों की बैठक में क्राउन प्रिंस सलमान ने स्वतंत्र फलस्तीन राष्ट्र की मांग करते हुए गजा पर हो रहे हमले को जनसंहार बताते हुए तुरंत युद्ध रोकने की मांग की है। इस बैठक में फलस्तीन, तुर्की, ईरान, मलयेशिया, अरब लीग, लेबनान, पाकिस्तान सहित 50 देशों के राष्ट्रपतियों या प्रतिनिधियों ने भाग लिया। सबने एक स्वर में इजरायल से तुरंत युद्ध खत्म करने की मांग की है। असल में इस बैठक को करने का मकसद  परोक्ष रूप से जनवरी में पद ग्रहण करने वाले ट्रंप पर दबाव बनाना माना जा रहा है। मुस्लिम देशों में जो बाइडेन की अपेक्षा ट्रंप को काफी उदार माना जाता है। इससे पहले अपने कार्यकाल में ट्रंप का रवैया मध्य पूर्व के लिए मध्यमार्गी रहा है। वह बाइडेन की तरह खुलकर इजरायल के पक्ष में आएंगे, इसकी संभावना कम ही मानी जा रही है। वैसे भी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान ट्रंप कई बार यह बात कह चुके हैं कि यदि वे राष्ट्रपति बने, तो गजा-इजरायल और यूक्रेन-रूस के बीच चल रहे युद्ध को रोकने की कोशिश करेंगे। रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन से उनके अच्छे संबंध भी बताए जाते हैं। रूस में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान पुतिन की मदद करने का उन पर आरोप भी लगा था। हालांकि यह साबित नहीं हो पाया था। सोमवार को अरब इस्लामिक देशों ने जिस तरह संगठित होकर स्वतंत्र फलस्तीन राष्ट्र की मांग करते हुए दो राष्ट्र के सिद्धांत की बात की है, उससे यह बात तो साफ हो गई है कि अरब के मुस्लिम देश अब धीरे-धीरे इजरायल के खिलाफ संगठित हो रहे हैं। निकट भविष्य में यह सभी देश यदि कोई सामूहिक फैसला लेते हैं, तो वह इजरायल के लिए संकट का कारण बन सकता है। भारत का रवैया इस मामले में बड़ा संतुलित है। वह अपने हितों को देखते हुए स्वतंत्र फलस्तीन के पक्ष में है, लेकिन राजनयिक और व्यापारिक संबंधों को इजरायल से बिगाड़ना भी नहीं चाहता है। और भारत के रवैये से किसी को कोई आपत्ति भी नहीं है।

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