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गफ्फार खान के परदादा को दी गई थी फांसी

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बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
खान अब्दुल गफ्फार खान के परदादा और दादा दोनों जीवन भर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते रहे। परदादा आबेदुल्ला खान हमेशा सच बोलते थे। वे लड़ाकू स्वभाव के थे। वह अंग्रेजों का अत्याचार सहन नहीं कर पाते थे। अंग्रेज जहां भी पठान कबीले पर हमला करते, आबेदुल्ला खान वहां पहुंचकर पठानों की मदद करते और अंग्रेजों को भारत से भगाने का हरसंभव प्रयास करते। अंग्रेजों ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ बगावत करने के आरोप में उन्हें फांसी दे दी थी। अब्दुल गफ्फार खान के दादा सैफुल्ला खान भी आजीवनभारत को स्वाधीन कराने का प्रयास करते रहे। ब्रिटिश अधिकारियों की नाक में उन्होंने हमेशा दम किए रखा था। खान अब्दुल गफ्फार खान ने आजादी की लड़ाई का पाठ अपने दादा से सीखा था। हालांकि उनके पिता बैराम खान संत प्रवृत्ति के आदमी थे। उन्होंने अंग्रेजों से बैर लेना उचित नहीं समझा, लेकिन अब्दुल गफ्फार खान ने अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंक दिया। सन 1930 में उन्होंने एक दल का गठन किया जिसे इतिहास में खुदाई खिदमतगार के नाम से जाना जाता है। इस दल के लोग सुर्ख पोश यानी लाल कुर्ती दल के सदस्य कहे जाते थे। बात तब की है, जब अब्दुल गफ्फार और अब्दुल जब्बार को  इंग्लैड पढ़ने के लिए जाना था, तब उनकी मां ने गफ्फार खान को कहीं जाने नहीं दिया। उनकी मां उन्हें बहुत प्यार करती थी। अंग्रेजों ने बगावत करने के जुर्म में उन्हें जेल में डाल दिया, तो उनकी मां ने अपने बेटे को पत्र लिखा कि यदि तुम कहो, तो मैं जेल में तुमसे मिलने आ जाऊं। गफ्फार ने जवाब दिया कि मैं जेल से छूटकर सीधा आपसे मिलने आऊंगा। वह जेल से छूटते इससे पहले उनकी मां चल बसीं। यह सुनकर गफ्फार खान जेल में फूट-फूटकर रोए।

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