दूसरों का भला करने वालों को मिलता सम्मान
अशोक मिश्र
करीब ढाई हजार साल पहले भारत में जब स्वामी महावीर और गौतम बुद्ध जैन और बौद्ध धर्म का प्रचार कर रहे थे। दोनों महापुरुष जब सत्य और अहिंसा का पाठ लोगों को पढ़ा रहे थे, उन्हीं दिनों चीन में एक संत लाओत्से नाम के संत लोगों को लगभग यही शिक्षा दे रहे थे। चीनी संत लाओत्से को ताओ धर्म का संस्थापक माना जाता है। कहा जाता है कि जब बौद्ध चीन पहुंचा, तो चीन और जापान में बौद्ध और ताओ धर्म की विचार धारा को मिलाकर एक नया धर्म पैदा हुआ जिसे झेन कहा जाता है। लाओत्से ने जीवन भर लोगों को सादगी, धैर्य और करुणा की शिक्षा दी। उन्होंने कहा कि जीवन को पानी की तरह होना चाहिए जिस पात्र में डाला जाए, उसी का आकार ग्रहण कर ले। एक बार की बात है। संत लाओत्से अपने शिष्यों के साथ कहीं जा रहे थे। रास्ते में जंगल पड़ा। उन्होंने देखा कि कुछ लोग उस जंगल में लगे पेड़ों को काट रहे थे। वृक्षों को काटने वाले एक घने छायादार पेड़ के नीचे खड़े हैं। उसे छोड़कर सारे पेड़ काट रहे हैं। उन्होंने अपने शिष्य से कहा कि जाकर पता करो, यह पेड़ क्यों काट रहे हैं और उस पेड़ को क्यों छोड़ दिया है। एक शिष्य पेड़ काटने वालों के पास गया और गुरु के बताए प्रश्नों को पूछा। एक आदमी ने कहा कि यह जो बड़ा पेड़ है, इसके नीचे लोगों को छाया मिलती है। मीठे फल मिलते हैं, भीषण गर्मी में लोगों को शीतलता प्रदान करता है। जो पेड़ काटे जा रहे हैं, वे न तो छांव देते हैं और न ही मीठे फल। इसलिए इन्हें काटा जा रहा है। शिष्य ने सारी बात संत को बताई, तो संत ने कहा कि इंसान की भी ऐसी स्थिति है। जो इंसान दूसरों का भला करता है, उसका ख्याल रखता है। वही मनुष्य दुनिया में सम्मान पाता है। अहंकारी मनुष्य को कोई सम्मान नहीं मिलता है।
अशोक मिश्र