कांतिलाल मांडोत
व्यसन हर युग में मानव के लिए विनाश का कारण बना है। जो व्यक्ति व्यसनों से घिर गया, वह स्वयं का ही पतन करता है। नशा जिसे व्यक्ति शान समझकर करता है, वह उसको नाश की ओर ले जाता है। नशे में डूबा व्यक्ति दूसरे लोगों के लिए तमाशा बनकर रह जाता है। अच्छा भला इंसान नशे मेंं डूबकर जानवरों सा व्यवहार करने लगता है। वह अच्छे बुरे का ज्ञान ही नहीं कर पाता। धन, वैभव की वृद्धि से मनुष्य व्यसनों का दास बन जाता है। जिस धन का उपयोग घर परिवार एवं समाज की उन्नति के लिए हो सकता है, उस धन का उपयोग लोग व्यसनों में करके अपना ही अंत करने लगते हैं। वर्तमान दौर में शराब निम्न वर्ग में ही नहीं, उच्च वर्ग में भी फैशन बन चुका है।
बड़े बड़े क्लबों में नव धनाढ्य वर्ग के लोग शराब का सेवन करके अपने आपको उच्च दिखाने की कोशिश करते हैं। शराब का सेवन फैशन बन चुका है। जीवन में कोई खुशी मिलती है तो उसे प्रकट करने के लिए लोग शराब का सेवन करते हैं। स्वयं तो पीते ही हैं, दूसरों को भी पिलाकर उन्हें अपनी खुशी का भागीदार बनाकर इठलाते हैं। कुछ लोग जीवन के तनाव से निकलने अथवा अपने गम को भुलाने के लिए शराब पीने लगते हैं। प्रत्येक परिस्थिति में शराब का सेवन मानव के लिए अहितकर ही होता है। कई नेता अपने आपको समाज एवं राष्ट्र के हित चिंतक समझकर शराब की बुराइयों पर लम्बे चौड़े भाषण झाड़ते है, उनकी निजी जिंदगी में भी झांककर देखने से लगता है कि उनकी कथनी और करनी में कितना बड़ा अंतर है।
ऐसे कर्णधारों से देश का भला नहीं हो सकता है। बेशक, शराब पीने में कोई विरोध नहीं है। लेकिन शराब के नशे में परिवार उजड़ चुके हंै। परिवार के सभी सदस्यों को मारने जैसी अमानवीय घटनाएं हम सुनते और अखबारों में पढ़ते आ रहे हैं। यह नशा ही है जिसमें आदमी अपना होश खो देता है। बच्चों के यौन शोषण का कारण भी नशा ही है। देश-दुनिया में जितने भी नरसंहार हो रहे हैं। उसके पीछे शराब ही वजह रही है। देश में होने वाली दुर्घटनाओं में शराब की अहम भूमिका है। शराब पीकर चलने वाले वाहन दुर्घनाग्रस्त हो रहे हैं। समाज में शराब तहलका मचा रही है। इस देश को रसातल में पहुंचाने अथवा स्वर्गतुल्य भारत भूमि को नरक बनाने में मदिरा का बहुत बड़ा हाथ है। शराब को हर युग मे खराब माना गया है। उत्तर प्रदेश और बिहार में कई बार जहरीली शराब पीने से मौतें हुई हैं। कवि शेक्सपियर का कथन है कि शराब का एक प्याला मनुष्य को बुद्धिहीन बना देता है। दूसरा पागल बना देता है और तीसरा डुबो देता है अर्थात चेतनाहीन कर देता है।
पाश्चातय संस्कृति के प्रभाव ने भारतीय जनमानस की प्रकृति में विकृति पैदा की है। आज देश में करोड़ों लोग शराब पी करके जीवन को नरक बना रहे हैं। वे अपने ओज और स्मरण शक्ति को खत्म करके परिवार को नरक की ओर धकेल रहे है। खुशहाल परिवार को शराब की ज्वाला में दहकाने लगे हंै। व्यसनग्रस्त व्यक्ति अपने परिवार को कष्टों में डाल देता है। शराबी अपना सबकुछ तबाह कर देता है। शराब का यह नशा सब कुछ नाश कर देता है। महात्मा गांधी ने कहा था कि मैं इस देश को व्यसनों से बचाऊंगा। शराब को सदा सदा के लिये यहां से विदा कर दूंगा। इसके लिए हमारे देश में प्रयास भी हुए। नशाबंदी लागू की गई। लेकिन कुछ स्वार्थी तत्त्वों ने चोरी छिपे इस व्यवसाय को चालू रखा। पैसा कमाने की होड़ में लोगों ने न जाने कितने परिवारों को तबाह किया है। देश के लगभग सभी राज्यों में जहरीली शराब पीने से न जाने कितने लोग मारे जा चुके हैं। गलत तरीकों से शराब बनाकर बेचना काफी समय से चला आ रहा है। नशे के आदी लोग शराब से अपना पिंड नहीं छुड़ा पाते हैं। अब गुजरात और बिहार में नशाबंदी लागू है। इन राज्यों में धड़ल्ले से शराब बिक रही है। शासन-प्रशासन को सब पता है, लेकिन वे इस पर रोक नहीं लगा पा रहे हैं। लोग नरक जैसी जिंदगी बसर करने को विवश हंै ।यह शराब अच्छे भले आदमी को पाप के गर्त में गिरा देती है। जीवन में विकास करना है तो शराब जैसे व्यसन को त्यागना होगा।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
कांतिलाल मांडोत