संजय मग्गू
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मिलकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने देश लौट रहे हैं। संभव है, जब आप यह पढ़ रहे हों, तब तक पीएम मोदी देश आ चुके हों। दोनों राष्ट्र के नेताओं की मुलाकात के बीच टैरिफ का मुद्दा छाया रहा। ट्रंप ने तो पीएम मोदी की मौजूदगी में ही न केवल रेसिप्रोकल टैरिफ की घोषणा की, बल्कि इस मामले में भारत को नहीं बख्शने की बात कही। रेसिप्रोकल टैरिफ का मतलब है कि जैसे को तैसा। जितना टैरिफ दूसरे देश अमेरिका पर लगाएंगे, अमेरिका भी उतना ही टैरिफ लगाएगा। इसके चलते अब ट्रेड वॉर शुरू हो जाने की बात अब अर्थशास्त्रियों ने करनी शुरू कर दी है। जब ट्रंप ने कनाडा, मैक्सिको और चीन पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने की बात कही थी, तभी से ट्रेड वॉर की आशंका गहराने लगी थी। कहा जाता है कि ट्रंप को टैरिफ बहुत पसंद है। अपने पहले पूरे कार्यकाल में भी ट्रंप अमेरिका का व्यापार घाटा कम करने के नाम पर ‘टैरिफ-टैरिफ’ की रट लगाते रहे। ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल की शुरुआत में सन 2017 में 479 अरब डॉलर के अमेरिकी व्यापार घाटे की बात कही थी। पूरे चार साल तक ट्रंप किसी माला की तरह टैरिफ-टैरिफ जपते रहे, लेकिन अमेरिकी व्यापार घाटे को कम नहीं कर पाए। जब उनका कार्यकाल पूरा हुआ, तो अमेरिका का व्यापार घाटा 643 अरब डॉलर तक पहुंच चुका था। पहली बार राष्ट्रपति बनने के बाद ही ट्रंप ने कहा था कि चीन के साथ 200 अरब डॉलर व्यापार घाटा कम किया जाएगा। चीन के साथ टैरिफ को लेकर ट्रेड वॉर शुरू होने के बाद दोनों तरफ से धमकियों और बार-बार टैरिफ को रिवाइज करने का दौर चलने के बाद भी घाटा कम नहीं हुआ। चीन ने सन 2020 में अमेरिका से 200 अरब डॉलर के अमेरिकी उत्पादों को खरीदने का वायदा किया, जो कभी पूरा नहीं हुआ। अपने चुनाव प्रचार से लेकर राष्ट्रपति का पदभार ग्रहण करने तक किसी भी देश को टैरिफ में छूट न देने की बात दोहराते रहे हैं। अभी ट्रंप को राष्ट्रपति बने तीन सप्ताह से कुछ ही ज्यादा दिन हुए हैं, लेकिन पूरी दुनिया एक अजीब से ट्रेड वॉर में फंसती दिखाई दे रही है। अगर अर्थशास्त्रियों की मानें तो टैरिफ ज्यादा लगाने से न किसी देश का व्यापार घाटा कम होता है और न ही उस देश में उत्पादन बढ़ता है। शुरुआती दौर में भले ही लगे कि नौकरियों के अवसर बढ़ रहे हैं, लेकिन कालांतर में जैसे ही बाजार में थोड़ी सी भी उथल-पुथल मचती है, वह नौकरियां भी खत्म हो जाती हैं। टैरिफ का भय दिखाकर यदि ट्रंप यह सोचते हैं कि विभिन्न देशों में काम कर रही अमेरिकी कंपनियां अपने देश लौट आएंगी, तो यह उनका एक दिवास्वप्न साबित हो सकता है। यह भी संभव है कि ये कंपनियां उन देशों की ओर अपना रुख कर लें जो अमेरिका पर कम टैरिफ लगाती हैं।भारत ने तो ट्रंप से टैरिफ घटाने का वायदा करके ट्रेड वॉर के दुष्चक्र में फंसने से अपने को फिलहाल बचा लिया है, लेकिन ट्रंप का बार-बार स्विंग होने वाला मूड कब बदल जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता है।
टैरिफ बढ़ाने से कम होगा अमेरिका का व्यापार घाटा?
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