केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने पिछले हफ्ते घोषणा की थी कि म्यांमार की सीमा से लगती भारतीय सीमा पर बाड़बंदी की जाएगी। भारत सरकार के इस फैसले के पीछे प्रमुख रूप से दो घटनाएं हैं। पहला प्रमुख कारण तो पिछले दिनों मणिपुर में भड़की हिंसक घटनाओं को माना जा रहा है। मणिपुर में मैतोई और कुकी जनजातियों के बीच हुई झड़पों और मारकाट के पीछे म्यांमार के विद्रोहियों का हाथ माना जा रहा है। मणिपुर की जातीय हिंसा के कारण हजारों लोग विस्थापित हुए हैं। करीब 170-180 लोगों की जान भी गई है। सैकड़ों महिलाओं के साथ दुराचार हुए, उनकी हत्याएं की गईं।
मणिपुर में आकर बसने वाले म्यांमार के प्रभावशाली ड्रग माफिया और पोस्त की खेती करने वालों ने हिंसा को और भड़काया है। ऐसा माना जा रहा है। फरवरी 2021 में म्यांमार में हुए सैन्य तख्ता पलट के बाद पूरा देश गृहयुद्ध की आग में जल रहा है। म्यांमार की सारी प्रशासनिक व्यवस्था पूरी तरह अस्त-व्यस्त है। कानून व्यवस्था नाम की चीज म्यांमार में नहीं रह गई है। सैन्य गुटों पर हमले और खाने-पीने की चीजों की लूटपाट ने हालात को और बिगाड़ दिया है। इसकी वजह से लगभग 20 लाख लोगों ने म्यांमार से पलायन किया है। इनमें से ज्यादातर लोग भागकर भारत के विभिन्न हिस्सों में रह रहे हैं। हालांकि मणिपुर की सरकार ने संघर्ष के लिए म्यांमार से आने वाले कुकी शरणार्थियों को जिम्मेदार ठहराया है। इसकी खुद की समिति ने पिछले साल अप्रैल में राज्य में म्यांमार से आए महज 2,187 अप्रवासियों की ही पहचान की थी।
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अब केंद्र सरकार बाड़बंदी की बात इसलिए कर रही है क्योंकि भारत का पूर्वोत्तर इलाका कई दशकों से अशांत रहा है। असम, मणिपुर, मेघालय, नगालैंड जैसे राज्यों में अलगाववादी शक्तियां दशकों से सक्रिय रही हैं। इधर मणिपुर की घटनाओं को लेकर कहा जा रहा है कि यहां होने वाली हिंसा के लिए म्यांमार से आए कुकी विद्रोही जिम्मेदार हैं। हालांकि यह भी सच है कि पूर्वोत्तर राज्यों में कुकी सदियों से रहते आए हैं। पूर्वोत्तर राज्यों की अच्छी जानकारी रखने वाले लोगों का मानना है कि केंद्र सरकार द्वारा सीमा पर बाड़ लगाने का कारण नागरिकों की आवाजाही नहीं है।
सीमा पर बाड़ इसलिए लगाए जा रहे हैं क्योंकि पूर्वोत्तर भारत के कई विद्रोही गुटों ने म्यांमार के सीमावर्ती गांवों और कस्बों में अपने शिविर बना लिए हैं। इन इलाकों में आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पॉवर एक्ट (अफस्पा) इसीलिए लागू किया गया था ताकि सुरक्षा बलों को तलाशी और जब्ती की शक्तियां दी जा सकें ताकि अलगाववादियों पर काबू पाया जा सके। यह भी सही है कि सैन्य अभियान के दौरान हुई नागरिकों की मौतों के आरोपों से बचाने वाला यह कानून विवादास्पद साबित हुआ है। म्यांमार में छिपे भारतीय विद्रोही आसानी से सीमा में घुस सकते हैं। यहां के लोगों से वसूली कर सकते हैं. कुछ लोगों का यह भी मानना है कि सीमा पर बाड़ लगाने के फैसले का यहां के लोग विरोध कर सकते हैं। यह भी सही है कि हमारे देश का म्यांमार से सदियों पुराना संबंध रहा है। भाषाई और सांस्कृतिक स्तर पर भारत-म्यांमार काफी करीब रहे हैं। हां, आज जरूर हालात काफी बदल गए हैं।
-संजय मग्गू
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