महामना मदन मोहन मालवीय सनातन धर्म के हिमायती होने के साथ-साथ शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए भी प्रयासरत रहते थे। वे स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय भाग लेने के साथ-साथ देश के युवाओं की शिक्षा की व्यवस्था लगे रहते थे। उन्होंने उस समय के राजाओं, जमीदारों और तालुकेदारों से चंदा मांगकर काशी (बनारस) हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की। इस विश्वविद्यालय में सभी विषयों की पढ़ाई होती थी। मालवीय जी की ख्याति पूरे भारत में थी। भारतीयता की भावना उनमें कूट-कूट कर भरी थी। एक बार की बात है। बीएचयू के कुछ छात्र गंगा स्नान के साथ-साथ नौका विहार करने गए।
वहां मल्लाह से उनका कुछ विवाद हो गया। कुछ देर तक उनके बीच बहस होती रही, लेकिन अंतत: छात्रों के सब्र का पैमाना छलक गया। उन्होंने गुस्से में आकर नौका को तोड़ दिया। उससे धक्का मुक्की भी की। इस पर मल्लाह रोता हुआ मालवीय जी के आवास पर पहुंचा और अपशब्द कहने लगा। वह अपनी नौका तोड़ी जाने से दुखी तो था ही, वह रो भी रहा था। थोड़ी देर बाद हल्ला सुनकर मालवीय जी बाहर आए और उन्होंने मामला जाना। मल्लाह ने रोते हुए कहा कि आपके छात्र इतने उद्दंड हैं कि उन्होंने मेरी नाव तोड़ दी है।
मालवीय जी ने कहा कि मैं आपकी नाव ठीक करवा दूंगा, लेकिन उनकी उद्दंडता के लिए आप मुझे जो भी सजा देना चाहें, मैं उपस्थित हूं। इतना कहकर मालवीय जी हाथ जोड़कर खड़े हो गए। उन्हें हाथ जोड़ता देखकर मल्लाह उनके पैरों में गिर पड़ा और अपने आचरण के लिए माफी मांगने लगा। मालवीय जी ने कहा कि नुकसान होने पर तुम्हारा क्रोधित होना गलत नहीं था।
अशोक मिश्र