रूस के कब्जे वाले खेरसान में बने बांध का एक हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया है। वैसे खेरसान यूक्रेन का हिस्सा है, लेकिन पिछले साल रूस से युद्ध शुरू होने के बाद उस हिस्से पर रूस का कब्जा हो गया था। खेरसान एक बहुत महत्वपूर्ण शहर है। इस शहर से गुजरने वाली निप्रो नदी पर छह बांध बने हुए हैं और हर बांध पर एक पावर प्लांट है। निप्रो नदी पर बने काखोव्का बांध का एक हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया है जिसकी वजह से नदी के आसपास बसे 16 हजार लोगों के जीवन को खतरा पैदा हो गया है। खतरा सिर्फ इतना ही नहीं है कि सोलह हजार लोग बांध के क्षतिग्रस्त होने से आई बाढ़ से प्रभावित होंगे। उनका विस्थापन होगा। असली खतरा यह है कि काखोव्का बांध के पास जलाशय है। यदि बांध क्षतिग्रस्त होने के चलते काखोव्का जलाशय का पानी भी बह गया तो जापोरिजजयिा परमाणु संयंत्र को ठंडा रखने के लिए आवश्यक पानी नहीं मिल पाएगा। यदि परमाणु संयंत्र को ठंडा नहीं रखा गया, तो इसके परिणाम कितने घातक हो सकते हैं, इसकी सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है।
परमाणु संयंत्र के गर्म होने के चलते होने वाले विकिरण से कितनी जानें जाएंगी, कितने लोग गंभीर रोगों के शिकार होंगे, कितने बच्चे, महिलाएं और पुरुष कैंसर से पीड़ित हो जाएंगे, इस पर कोई आकलन कर पाना आसान नहीं है। खेरसान शहर और उसके आसपास के इलाके एक तरह सेमौत के मुहाने पर आ खड़े हुए हैं। ऐसे हालात के लिए यूक्रेन अपने विरोधी रूस पर आरोप लगा रहा है और रूस यूक्रेन पर। काखोव्का बांध किसके हमले की वजहसे क्षतिग्रस्त हुआ है। अभी यह कह पाना बहुत मुश्किल है। युद्ध के दौरान एक देश अपने दुश्मन देश पर कई तरह के आरोप लगाता है, लेकिन वे सब सही ही हों, इसकी कोई गारंटी नहीं है। संभव है कि रूसी गोलाबारी में काखोव्का बांध क्षतिग्रस्त हुआ हो। दरअसल, जब दो देशों में युद्ध होता है, तो सबसे ज्यादा नुकसान उस देश की जनता को उठाना पड़ता है। इस युद्ध में जीत भले ही किसी एक देश की हो, लेकिन उसका खामियाजा दोनों देश की जनता को ही उठाना पड़ता है। युद्ध का सबसे ज्यादा भुगतान दोनों देश की महिलाओं, बच्चियों को करना पड़ता है।
किसी दार्शनिक का यह कथन कि युद्ध हमेशा महिलाओं की देह पर लड़े जाते हैं, बिल्कुल सही प्रतीत होता है। रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भी ऐसी बहुत सारी खबरें आई कि रूसी सैनिकों ने यूक्रेनी महिलाओं, बच्चियों के साथ बलात्कार किए, उनकी हत्याएं की। यह कोई नहीं बात नहीं है। सदियों से ऐसा ही होता आ रहा है। रूस और यूक्रेन युद्ध में जीत भले ही किसी की हो, लेकिन प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इसकी कीमत दोनों देशों के नागरिकों को ही अदा करनी होगी। दोनों देशों में इन दिनों महंगाई चरम पर है, बेरोजगारी भी काफी बढ़ चुकी है क्योंकि युद्ध के चलते उद्योग-धंधे ठप पड़ चुके हैं। अर्थव्यवस्था चौपट हो चुकी है, लेकिन दोनों देशों के शासक अपनी-अपनी जिद पर अड़े हुए हैं। इसका परिणाम भयावह ही होगा क्योंकि युद्ध के परिणाम कभी सुखद नहीं होते हैं।
संजय मग्गू