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बोधिवृक्ष : सादगी से रहना पसंद करते थे हसरत मोहानी

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अशोक मिश्र
हसरत मोहानी उर्फ सैयद फजल-उल-हसन को भारतीय इतिहास में ‘इंकलाब जिंदाबाद’ (क्रांति अमर रहे) नारा देने के लिए याद किया जाता है। इस नारे का बाद में सरदार भगत सिंह, अशफाक उल्ला खां वारसी जैसे तमाम क्रांतिकारियों ने लोकप्रिय बनाया था। हमारे देश के क्रांतिकारियों ने ‘इंकलाब जिंदाबाद’ का नारा लगाकर ही ब्रिटिश हुकूमत को चुनौती दी थी। हसरत मोहानी का जन्म उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के मोहान कस्बे में 1 जनवरी 1875 को हुआ था। इन्होंने सन 1903 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से बीए की शिक्षा प्राप्त की थी। वह कांग्रेस के बड़े नेताओं में शुमार किए जाते थे। वह एक ख्याति प्राप्त शायर भी थे। एक बार की बात है। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के किसी कार्यक्रम में हसरत मोहानी को भाग लेना था। चूंकि मोहानी ने बीए इसी यूनिवर्सिटी से किया था, तो वहां के छात्र-छात्राओं को लेकर बड़ा जोश था। सैकड़ों छात्रों ने रेलवे स्टेशन पर ही उनका स्वागत करने का प्रोग्राम बनाया। हाथों में तरह-तरह की झंडियां और फूल मालाएं लेकर वे रेलवे स्टेशन पहुंच गए। अपने नियत समय पर गाड़ी अलीगढ़ पहुंची। छात्र हर बोगी में मोहानी को खोजने लगे। काफी खोजने के बाद जब हसरत मोहानी नहीं मिले, तो लड़के उदास हो गए। उन्होंने सोचा कि शायद किसी कारणवश वह कार्यक्रम में भाग लेने न आ पाए हों। यही सोचकर वह वापस लौटने लगे, तो रेलवे स्टेशन के बाहर एक निर्माणाधीन इमारत के पास वह मजदूरों के साथ हाथ तापते मिले। लड़कों ने कहा कि हम आपको खोज रहे थे और आप यहां बैठे हैं। हसरत मोहनी ने बड़ी सादगी से कहा कि मुझे स्टेशन पर भीड़ देखकर लगा कि कोई बड़ा आदमी आया होगा, तो पीछे से उतरकर मैं यहां चला आया।

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