बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
संसार में बहुत सारे लोग ऐसे मिल जाएंगे, जो कर्म के बजाय भाग्य को प्रमुख मानते हैं। भाग्य केवल उन्हीं का चमकता है जो हमेशा कर्मरत रहते हैं। महाकवि तुलसीदास ने भी लिखा है कि कर्म प्रधान विश्व रचि राखा। इस दुनिया में अगर कुछ भी सुंदर है, वैभवशाली है, लोकरंजक है, तो हर उस काम के पीछे किसी न किसी का कर्म रहा होगा। इतनी सुंदर दुनिया होने का कारण ही कर्म है। एक बार की बात है। महावीर स्वामी किसी गांव से गुजर रहे थे। उस गांव के बाहर एक कुम्हार मिट्टी के घड़े बना रहा था। उसे अपने भाग्य पर काफी भरोसा था। वह सुखी और संपन्न भी था क्योंकि वह बड़ी मेहनत से घड़े बनाता था और उसे बेचकर अपनी आजीविका चलाता था। उसका मानना था कि जिसके साथ अच्छा होता है, उसका भाग्य अच्छा होता है। खराब भाग्य वालों के साथ हमेशा बुरा ही होता है। अच्छा हो ही नहीं सकता है। महावीर स्वामी को यह बात पता चली, तो उन्होंने उसके पास जाकर कहा कि भले मानस, हर काम कर्म यानी पुरुषार्थ से होता है। पुरुषार्थी व्यक्ति ही सारे सुखों का भोग कर सकता है, उसकी किस्मत चमकती है। कुम्हार इस बात से सहमत नहीं हुआ। तब स्वामी महावीर ने कहा कि चलो, थोड़ी देर के लिए मान लो कि तुम्हारे सारे घड़े कोई फोड़ दे तो क्या होगा? कुम्हार ने कहा कि मैं मान लूंगा कि इन घड़ों के भाग्य में फूटना ही लिखा था। स्वामी महावीर ने कहा कि यदि तुम्हें अकारण पीटने लगे, तो? कुम्हार क्रोधित हो उठा और बोला, कोई ऐसे कैसे पीट देगा? तब महावीर ने कहा कि अब तुम भाग्य के बीच में क्यों आते हो? क्या पता तुम्हारे भाग्य में पिटना ही लिखा हो। यह सुनकर कुम्हार सारी बातें समझ गया। उसने स्वामी महावीर से इसके लिए क्षमा मांगी।
अगर तुम्हें कोई अकारण पीट दे तो?
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