बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
गुरु का काम है अपने शिष्य को निखारना, उसे समाज के लायक बनाना। जो काम गुरु करता है, वह कोई नहीं कर सकता है। यही वजह है कि गुरु को माता-पिता के बाद का दर्जा दिया जाता है। भगवान का दर्जा भी गुरु से नीचे ही होता है। गुरु ही अपने शिष्य को इस लायक बनाता है कि वह आगे चलकर अपने देश और समाज का हित कर सके और अपने परिवार का पालन-पोषण कर सके। एक बार की बात है। एक आश्रम में दूर-दूर से बच्चे पढ़ने आते थे। उस आश्रम की बहुत प्रतिष्ठा थी। उस आश्रम के आचार्य भी काफी विद्वान थे। इन छात्रों में एक लड़का ऐसा भी था जिसे चोरी की आदत थी। एक बार वह चोरी करते हुए पकड़ा गया। छात्रों ने अपने गुरु से उस छात्र की शिकायत की। लेकिन गुरु जी ने मामले को अनसुना कर दिया और उस छात्र से कुछ नहीं कहा। इस घटना को कुछ दिन बीत गए। एक दिन वही छात्र फिर चोरी करते हुए पकड़ा गयाा। चोरी की बात फिर गुरु जी तक पहुंचाई गई। लेकिन गुरु जी इस बार भी मौन रहे। लेकिन जब तीसरी बार यही घटना हुई, तो वहां पढ़ने वाले छात्र भड़क उठे। उन्होंने गुरु जी से कहा कि यदि आपने इस छात्र को आश्रम से नहीं निकाला तो हम लोग दूसरे आश्रम में पढ़ने के लिए चले जाएंगे। इस पर गुरु जी ने कहा कि इस छात्र को आश्रम से नहीं निकाला जाएगा। आप लोग दूसरे आश्रम में जाना चाहते हैं, तो जा सकते हैं। आप लोगों को यह तो पता है कि सही क्या है और गलत क्या है? लेकिन जिस छात्र को सही गलत ही नहीं पता है, उसे कौन इसका एहसास कराएगा। यदि मैं उसे सही-गलत का अंतर न बता सका, तो मेरा पढ़ाना बेकार है। इन छात्रों में चोरी करने वाला छात्र भी था। गुरु की बात सुनकर उसकी आंखों से आंसू गिरने लगे और उसने गुरु से अपने किए की क्षमा मांगी। आगे से चोरी न करने का संकल्प लिया।
छात्र को सही-गलत का अंतर कौन बताएगा?
- Advertisement -
- Advertisement -
RELATED ARTICLES