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बोधिवृक्ष : राजेंद्र बाबू ने नहीं छोड़ा सच का साथ

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राजेंद्र बाबू के नाम से मशहूर डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 में बिहार के सारण जिले (अब सीवान) में हुआ था। इनके पिता महादेव सहाय संस्कृत और फारसी के विद्वान थे। राजेंद्र प्रसाद बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे। उनके पिता ने एक बार उन्हें कुल्हाड़ी लाकर दी। वह कुल्हाड़ी लेकर खूब खेलते थे। वे कभी झाड़ियों पर कुल्हाड़ी से वार करते, कभी कोई पेड़ मिल जाता तो उसे काटने लगते थे। एक दिन राजेंद्र प्रसाद ने खेल-खेल में आम के एक पेड़ को काट डाला। जब तक उन्हें अपनी गलती का पता चलता, तब तक वे पेड़ को काटकर गिरा चुके थे।

उस दिन संयोग से उनके पिता कहीं बाहर गए थे। लौटकर उन्होंने जब पेड़ की दशा देखी, तो उन्हें बहुत क्रोध आया। उन्होंने गरजते हुए पूछा कि पेड़ किसने काटा है? यह सुनकर राजेंद्र प्रसाद डर गए। उन्होंने एक बार सोचा कि जब पिता जी पूछेंगे, तो साफ इनकार कर दूंगा। लेकिन उनका मन नहीं माना। वह डरते हुए पिता के पास पहुंचे और बोले कि वह पेड़ मैंने काटा है। अपने बेटे की बात सुनकर महादेव सहाय बड़े खुश हुए। वह जानते थे कि आम के पेड़ को उनके पुत्र ने ही काटा है। उन्होंने कहा कि कुछ भी हो, लेकिन जीवन में कभी झूठ मत बोलना।

परिस्थितियां कैसी भी हों, सच बोलने वाले का भला ही होता है। उस दिन से राजेंद्र बाबू ने अपने पिता की बात गांठ बांध ली। बाद में जब स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय हुए, तो भी उन्होंने अंग्रेजों के सामने भी झूठ नहीं बोला। वे चाहते तो थोड़ा सा इधर उधर बयान देकर वे लंबी सजा से बच सकते थे। अपनी ईमानदारी, सच्चाई और गरीबों की सेवा भावना के चलते अखिल भारतीय कांग्रेस के वे अध्यक्ष बने। जब देश आजाद हुआ तो वे भारत के पहले राष्ट्रपति बनाए गए। उन्हें अपने पिता की बात जीवन भर याद रही।

अशोक मिश्र

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