कई बार लोगों को लगता है कि फलां आदमी की वजह से उसको दुख मिला। उस आदमी ने ऐसा न किया होता, तो उसे यह परेशानी नहीं होती। लेकिन ज्यादातर मामलों में होता यह है कि लोग अपनी ही वजह से परेशान रहते हैं। दुख का कारण वे स्वयं होते हैं। एक बार की बात है। गौतम बुद्ध के विरोधियों ने नगर में यह प्रचार कर दिया कि बुद्ध ढोंगी हैं। वे उन्हें बरबाद कर रहे हैं। उनकी शिक्षाएं बुद्धि को भ्रष्ट कर देंगी। जब महात्मा बुद्ध नगर में भ्रमण कर रहे थे, तो उनके शिष्यों ने यह बात बताई। उन्होंने गौतम बुद्ध से निवेदन किया कि वे अपने खिलाफ किए जा रहे भ्रामक प्रचार का विरोध करें। उन्हें समझाएं कि वे कुछ भी गलत नहीं कर रहे हैं।
महात्मा बुद्ध उस समय तो चुप रह गए, लेकिन अगले दिन वे उस जगह पहुंचे, जहां उनके विरोधी उनकी बुराई कर रहे थे। वह उस जगह पर जाकर चुपचाप खड़े हो गए। महात्मा बुद्ध के विरोधियों ने जब उनको देखा, तो जोर-जोर से ऊलजुलूल कहना शुरू किया। काफी देर बाद जब वे थक गए, तो बुद्ध ने उनसे विनम्रता से पूछा कि आप लोगों को और कुछ कहना है कि नहीं। यदि कुछ नहीं कहना है, तो मैं जाऊं। इस पर वहां मौजूद एक व्यक्ति ने कहा कि हम लोग तुम्हारा गुणगान नहीं कर रहे थे, तुम्हारी बुराई कर रहे थे।
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इस पर महात्मा बुद्ध ने स्मित हास्य बिखेरते हुए कहा कि मैं जानता हूं। आपने जो कुछ भी मेरे बारे में कहा, मैं उसे स्वीकार नहीं करता हूं। मैंने कुछ गलत नहीं किया है। आपको जब भी बुराई करने का मन करे, मुझे बता दीजिएगा, मैं सुनने आ जाऊंगा। यह सुनकर वहां मौजूद लोग लज्जित हो गए। वह समझ गए कि गौतम बुद्ध अपने विरोधियों के प्रति भी दया भाव रखने वाले हैं। उन लोगों का हृदय परिवर्तन हो गया।
-अशोक मिश्र
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