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अब तो आ! गले लग जा!!

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आज दुनिया भले ही दो बड़े युद्धों में उलझी हुई है । दुनिया में तीन दर्जन देश में आपस में लड़ रहे हैं फिर भी लोगों को याद दिलाया जा रहा है कि आज ‘आलिंगन दिवस ‘ यानि ‘हग डे’ है। आज की पीढ़ी ‘आलिंगन’ को नहीं ‘हग’ को जानती है । फिल्मों ने इस आलिंगन को ‘ जादू की झप्पी ‘ बना दिया है। जबकि आलिंगन प्रेम प्रदर्शन की एक आदिकालीन क्रिया है । देह की एक विशिष्ट मुद्रा है। आलिंगन से लोग पास आते हैं और अदावतें दूर भाग जाती हैं।
आज में सियासत की बात नहीं कर रहा ,इसलिए जरा अपनी स्मृति पर जोर डालकर बताइये कि आपने सबसे आखरी बार किसे जादूकी झप्पी दी थी ? किसे अपनी बाहों में भरा था ? किसे आलिंगनबद्ध किया था ? शायद आपको ये सब मुश्किल से याद आये,क्योंकि अब बिरला ही होगा जो जादू की झप्पी देता या लेता हो। जादू की झप्पी देना यानि आलिंगन करना अब असभ्यता समझा जाता है । अशिष्टता मानी जाती है ये क्रिया। राजनीति में तो ऐसा करने वाले का मजाक उड़ाया जाता है। उसे ‘ पप्पू ‘ तक कह दिया जाता है।

hug day

मुझे याद है कि बचपन में हम लोग जब स्कूल की छुटिटयां होने पर अपने मामा या दादी के पास जाते थे तो दौड़कर अपने मां,नानी,चाचा दादी आदि रिश्तेदारों को आलिंगन में भर लेते थे और देर तक एक दूसरे को बाहों में भींचे रहते थे। कभी-कभी इस प्रक्रिया में नेत्र सजल हो जाते थे, देह कम्पित होने लगती थी । रोमांचित हो जाती थी देह। लेकिन अब पता नहीं कब से कोई आकर गले नहीं मिला । कोई आलिंगनबद्ध नहीं हुआ । रिश्तेदार और दोस्तों की तो छोड़िये परिवार के सदस्य तक आलिंगन देने या लेने में सकुचाते हैं या इसे आवश्यक नहीं मानते।

कभी फुरसत मिले तो अपने किसी को आलिंगनबद्ध करके देखिये। आलिंगन स्नेह प्रदर्शन का वो रूप है, हम एक दूसरे की गर्दन, पीठ, या कमर के चारों ओर बाहुपाश डालते हैं और परस्पर एकाकार हो जाते हैं ।दुनिया के हर समाज में आलिंगन को मान्यता प्राप्त है । इसे असभ्यता मानने वाले लोग ही असभ्य हैं। आलिंगन के लिए हिंदी हो अंग्रेजी सभी भाषाओँ में एक से अधिक शब्द हैं। हिंदी में आम बोलचाल में इसे ‘ लिपटा-लिपटी कहा जाता है । आप आलिंगन को अँकवार,अंकमाल,परिरम्भण ,गलबहियां भी कह सकते हैं आलिंगन के इससे भी ज्यादा पर्यायवाची होंगे,किन्तु सभी का भाव एक ही होगा ,जो हृदय को स्पंदित करना ही है।

आलिंगन केवल मनुष्यों की बपौती नहीं है । दुनिया में जितने भी स्तनपायी जीव हैं वे आलिंगनबद्ध होते है। स्तनपायी तो क्या सरी-सर्प और विहंग भी आलिंगनबद्ध होते दिखाई देते हैं ,बल्कि मनुष्य के मुकाबले अधिक आवेग से आलिंगनबद्ध होते दिखाई देते है।अगर आप संवेदनशील हैं और अंतर्दृष्टि रखते हैं तो आपने बनस्पतियों को भी आलिंगन करते हुए देखा होग। लतिकायें,बल्लरियाँ ऐसे आपस में गुम्फित हो जातीहैं की उन्हें आसानी से अलग नहीं किया जा सकता।कुत्ते,सांप,गिरगिट ,मेंढक,गौरैया सब आलिंगन लेना-देना जानते हैं। प्रेम और आलिंगन के विरोधियों को आलिंगन का दर्शन करना है या उसके ताप को समझना है तो वे रामचरित मानस में भरत-मिलाप के प्रसांग को अवश्य पढ़ें । भरत और निषाद के प्रसंग को भी देखें ,राम और हनुमान के ही नहीं राम और सुग्रीव के मैत्री प्रसंग को ही देख लें तो समझ आ जाएगा की आलिंगन एक सनातन परम्परा और प्रक्रिया है।

बहरहाल मै आलिंगन की बात कर रहा था । आलिंगन हमारी संस्कृति और साहित्य का भी अभिन्न अंग रहा है । हमारी फ़िल्में तो हमेशा आलिंगन की समर्थक रही है। फिल्मों के जरिये आलिंगन को खूब प्रचार मिला है। आपके अवचेतन में एक गीत हमेशा गूंजता होगा-‘लग जा गले की फिर ये हंसी रात हो न हो ‘ आलिंगन के आग्रह और निमंत्रण की इससे बेहतर अभिव्यक्ति कोई दूसरी हो नहीं सकती हमने तो युवावस्था में एक फिल्म देखी थी जिसका नाम ही था -‘ आ गले लग जा । ‘संजय दत्त की एक फिल्म ‘मुन्ना भाई एमबीबीएस ने तो आलिंगन को जादू की झप्पी के रूप में इतना लोकप्रिय बना दिया था कि ये मृतप्राय परम्परा एक नए रूप में समाज में वापस लौट आयी थी।
आज जब देश और दुनिया अदावत के एक विचित्र दौर से गुजर रही है तब आलिंगन की महती आवश्यकता है। हम आपसी वैर-भाव को सामाजिक अलगाव को दो देशों के बीच खूनी जंगों को आलिंगन के जरिये रोक सकते है। खाइयां पाट सकते हैं।
आलिंगन खाइयां पाटने का एक प्रामाणिक तरीका है । ईद पर,होली-दीवाली पार हम सदियों से एक दूसरे को आलिंगन में भरते आये हैं। आलिंगन जाति,धर्म,वर्ण,रंग-रूप कुछ नहीं देखता। ,लेकिन अब ये आलिंगन संकटापन्न है।अर्थशास्त्र के साथ ही सियासत ने आलिंगन की मिटटी कूट दी है। आलिंगन को मनुष्यता के हित में बचने यानि संरक्षित करने की आवश्यकता है। हमारे देश के प्रधानमंत्री विश्वगुरु बनने के लिए दुनिया के तमाम देशों के राष्ट्रप्रमुखों को जादू की झप्पियाँ सार्वजनिक रूप से देते है। सभ्य कहे जाने वाले देशों के राष्ट्राध्यक्ष कभी-कभी मोदी जी की इस कोशिश से अचकचा जाते हैं,किन्तु मुझे ये अच्छा लगता है। दुनिया में साधू-संत हो या हिटलर आलिंगन की अवज्ञा नहीं कर सकत। संत होने के लिए भी आलिंगन उतना ही आवश्यक है जितना की हिटलर बनने के लिए।

हाल ही में हुए एक अध्ययन के मुताबिक जादू की झप्पी बड़े काम की चीज है। अगर आपका हमसफ़र किसी तनाव या किसी तरह के दर्द से गुजर रहा है, तो उसे आलिंगनबद्ध करके यानि ‘हग’ करके देखिये उसे दवाओं से ज्यादा राहत मिलेगी। भारत के बाहर दुनिया वाले वेलेंटाइन डे से एक हफ्ते पहले आलिंगन दिवस यानि ‘ हग डे ‘ मनाते हैं। संयोग से इस साल ये दोनों दिन बसंत के मौसम में पड़ रहे है। मै अपने तजुर्बे से कहता हूँ कि यदि आप अपने जीवन में सदैव बसंत की मौजूदगी चाहते हैं तो एक बार अपने किसी भी प्रिय को आलिंगनबद्ध करके अवश्य देखे। आलिंगन करने के लिए केवल प्रेयसी या पत्नी का होना ही आवश्यक नहीं है । आप अपने बच्चों को,बच्चों के बच्चों को दोस्तों,रिश्तेदारों अपने सहकर्मियों को भी आलिंगनबद्ध कर सकते है। किसी संहिता में आलिंगन का निषेध नहीं है।मुझे तो आज भी जब भी अवसर मिलता है किसी न किसी को आलिंगनबद्ध करता हूँ और उस ताप को महसूस करता हूँ जो दैहिक ही नहीं बल्कि दैविक भी है। भगवा ब्रिगेड से आग्रह है कि वे आलिंगन में बाधक न बनें। आलिंगन दिवस कि हार्दिक शुभकामनायें

-राकेश अचल

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