संकट के दौर का बदलाव
अशोक मिश्र
जीवन में मुश्किल हर किसी के सामने आती है। चाहे राजा हो या भिखारी, अमीर हो या गरीब, वह यह नहीं कह सकता है कि उसके जीवन में संकट कभी नहीं आया है। संकट आने पर व्यक्ति में बदलाव आता है। यह बदलाव सकारात्मक है या नकारात्मक, यह व्यक्ति पर ही निर्भर करता है। प्रकृति जीवन के हर पल में संकट पैदा करके प्रत्येक जीव की परीक्षा लेती है। प्रकृति प्रत्येक को जीवन में एक बार जरूर अपने को बदलने का मौका देती है। इसी बात को एक शिक्षक अपने शिष्यों को समझाना चाह रहे थे। लेकिन बच्चे उनकी बात को समझ नहीं पा रहे थे। काफी सोचने-विचारने के बाद शिक्षक ने एक आलू, एक अंडा और दो चुटकी चायपत्ती लिया और उसे एक ही बर्तन में पकने के लिए छोड़ दिया। दस मिनट बाद उन्होंने अपने शिष्यों से आलू, अंडा और चाय पत्ती को देखने को कहा। देखने के बाद उसे छूने को कहा। छात्रों ने पाया कि आलू पहले से जितना नरम था, वह पकने के बाद और नरम हो गया है। अंडा जितना कड़ा था, अब वह उससे कहीं ज्यादा कड़क हो गया था। चाय की पत्ती का रूप रंग ही बदल गया था। उन्होंने अपने छात्रों से पूछा कि क्या बदलाव आया है? छात्रों ने कहा कि आलू पहले जितना नरम था, उससे कुछ ज्यादा ही नरम हो गया है। अंडा पहले से कुछ ज्यादा ही कड़क था। और चायपत्ती ने पानी में घुलकर पानी को भी अपना रंग प्रदान कर दिया है। तब अध्यापक ने कहा कि इन तीनों पर एक ही तरह का संकट आया था यानी सबको एक ही बर्तन में एक जैसी आग का सामना करना पड़ा, लेकिन सबमें अलग-अलग तरह का परिवर्तन दिखाई दिया। ठीक इसी पर यह मनुष्य पर ही निर्भर करता है कि वह संकट आने पर अपने आप में कैसा बदलाव लाना चाहता है। यह बदलाव ही तय करता है कि व्यक्ति को अपने प्रकृति की कितनी समझ है। अब बच्चे बात को समझ गए थे।
अशोक मिश्र