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सीरिया में तख्तापलट के बाद विखंडन का खतरा

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शगुन चतुर्वेदी
नाटकीय घटनाक्रम के साथ सप्ताह भर में सीरिया में तख्तापलट हो गया। वहां से पिछले 53 वर्षों की शिया मुसलमान असद परिवार के शासन का अंत हो गया। राष्ट्रपति रहे बसर अल-असद के परिवार सहित रूस में शरण लेने का दावा किया जा रहा है। विपक्षी लड़ाकों हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) गठबंधन ने सत्ता को अपने हाथों में ले ली है। वर्ष 2011 में शुरू हुए अरब विद्रोह की अंतिम केंद्र सीरिया बना था। इसी विद्रोह को केंद्र में रखकर विद्रोहियों ने मिस्र, लीबिया, ट्यूनीशिया और यमन में सत्ता को उखाड़ फेका था लेकिन असद के तानाशाही के सामने विद्रोहियों को सीरिया में मात खानी पड़ी थी। अंतत: दुश्मन को छोटा समझने की गलती से विद्रोही 2024 में राष्ट्रपति बशर की तख्तापलट में सफल हो गए।
प्रश्न है कि अचानक से हुए तख्तापलट की भनक तानाशाह बशीर को कैसे नहीं लगी? वैश्विक खुफिया एजेंसियों के पास कैसे इसकी जानकारी नहीं रही? हिजबुल्लाह के केंद्र सीरिया में ईरान और रूस की छत्रछाया में शासन चला रहे बसर विद्रोहियों की ताकत से अनभिज्ञ कैसे बने रहे? दरअसल, न केवल यूक्रेन के साथ युद्ध में अपनी ताकत झोक देने वाले रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन द्वारा सीरिया को दी जाने वाली रूसी सहायता में कमी आई बल्कि इजराइल के साथ चल रहे संघर्ष ने भी हिजबुल्लाह और ईरान दोनों की सम्पूर्ण ताकत संघर्ष पर केन्द्रित रखने से सीरिया से उनका ध्यान कम कर दिया। हालाँकि, रूस का समर्थन अभी सीरिया को प्राप्त है। लेकिन रूस ने पश्चिम एशिया में एक मजबूत आधार खो देने के साथ ही अब हिजबुल्लाह से संपर्क साधने में ईरान को कठिनाई आने से तथा इस क्षेत्र की अस्थिरता इजराइल तथा अमेरिका के लिए फायदेमंद बना दिया है।
गौर करने वाली बात है कि सीरिया के नागरिक इस तख्तापलट से खुश है क्योकिं वर्षों पहले से जारी गृह-युद्ध से लगभग दस लाख लोगों की जान चली गई, तो वहीं लगभग पंद्रह लाख लोग शरणार्थियों के रूप में जीवन गुजार रहे हैं। इससे विस्थापित लोगों को सीरिया में वापस लौटने की उम्मीद जगी है। बशर के शासनकाल में व्यापक गरीबी, भष्टाचार और असमानता ने जनता के बड़े हिस्सों को शासन से अलग कर दिया था। एचटीएस गठबंधन ने सरकार की घटती शक्ति का लाभ उठाया और विपक्षी शक्तियों को एकजुट करके दमिश्क पर कब्जा किया। वैसे बशर के देश छोड़ने के साथ ही सीरिया पर नेतृत्व संकट शुरू हो गया है क्योंकि अभी कोई स्पष्ट राजनीतिक विकल्प नहीं है। एकीकृत राष्ट्रीय दृष्टिकोण के बिना सीरिया के विखंडन का खतरा बना रहने वाला है। महत्वपूर्ण सवाल तो यह है कि तख्तापलट के बाद क्या सीरिया में सब सामान्य हो जाने वाला है। कई सवालों से घिरा सीरिया अनेक समूहों में बंटा हुआ है जो इसकी सबसे बड़ी समस्या बनने वाली है। सीरिया में स्थिरता न होने से पहला असर लेबनान पर पड़ने वाला हैं। न केवल लेबनान में हिजबुल्लाह की मजबूती को खतरा होगा बल्कि ईरान में भी शिया और सुन्नी के बीच विभाजन बढ़ने से तख्तापलट का खतरा बढ़ने वाला है।
उल्लेखनीय है कि सीरिया के लड़ाई के मध्य गैस का खेल है। सीरिया के तुर्की समर्थित लड़ाकों के हाथ में जाना कतर-तुर्किये गैस पाइपलाइन के प्रस्ताव को नया जीवन मिल सकता है जिसके जरिये कतर और सऊदी अरब की गैस सीरिया और तुर्किये से होकर यूरोप पहुँच सकती है। यूरोप की रूस पर से ऊर्जा निर्भरता घट सकती है। रूस अपनी पाइपलाइन को संरक्षित करने के लिए ईरान के मदद से सीरिया में अपने खुफिया अभियानों का दायरा बढ़ाएगा। असद सरकार का पतन का असर सुरक्षा पर भी पड़ने वाला है। असद ने रूस और ईरान के समर्थन से इस्लामिक स्टेट को सीरिया से खात्मा किया था। अब आईएस के पुन: उभरने की चुनौती है।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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