Sunday, September 8, 2024
26.1 C
Faridabad
इपेपर

रेडियो

No menu items!
HomeEDITORIAL News in HindiEditorial: पहाड़ों पर विकास यानी प्रकृति के विनाश को न्यौता

Editorial: पहाड़ों पर विकास यानी प्रकृति के विनाश को न्यौता

Google News
Google News

- Advertisement -

देश रोज़ाना: दीपावली के दिन जब पूरा देश पावन पर्व के जश्न में डूबा था, ठीक उसी दिन उत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी जिले में यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर निमार्णाधीन सिल्क्यारा नामक एक सुरंग का एक हिस्सा ढह गया। इस हादसे में सुरंग निर्माण में लगे 41 श्रमिक बीच सुरंग में ही फंसे रहे। सुरंग का निर्माण उत्तराखंड के उत्तरकाशी में ‘चार धाम परियोजना’ के तहत किया जा रहा है। श्रमिकों को सकुशल व सुरक्षित बाहर निकालने के लिए उच्चस्तरीय बचाव व राहत अभियान युद्धस्तर पर चलाया गया।
सिल्क्यारा सुरंग हादसे के बाद एक बार फिर पर्वतीय क्षेत्रों में होने वाले विकास कार्यों तथा इनसे उपजने वाले संकटों पर बहस शुरू हो गयी है। पहाड़ों में सुरंग बनाना ही जरूरी है या इसके बिना भी विकास किया जा सकता है, भू वैज्ञानिक, पर्यावरण के जानकार यह सवाल फिर पूछने लगे हैं। इस हादसे के बाद हिमाचल प्रदेश जैसे कुछ सुरंग प्रधान राज्यों की सरकारों की भी नींदें खुली हैं।

हिमाचल सरकार अब राज्य में निमार्णाधीन सुरंगों का सुरक्षा आॅडिट कराने की तैयारी में है। इसके तहत सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण समझा जाने वाले चंडीगढ़-मनाली राजमार्ग के अंतर्गत निमार्णाधीन सुरंगें भी सुरक्षा आॅडिट में शामिल रहेंगी। देशभर की लगभग 29 सुरंगों को सुरक्षा आॅडिट के लिये चिन्हित किया गया है। इनमें 12 सुरंगें केवल हिमाचल प्रदेश में ही हैं। लगभग 79 किमी लंबी इन सभी 12 सुरंगों की तकनीकी जांच भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण और डीएमआरसी अर्थात दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन के विशेषज्ञों द्वारा संयुक्त रूप से की जाएगी। हिमाचल सरकार यह कवायद उत्तरकाशी की सिल्क्यारा सुरंग धंसने के बाद ही करने जा रही है।

सुरंग निर्माण प्रक्रिया को चूँकि मैंने बहुत करीब से देखा है। व्यावसायिक रूप से इस प्रक्रिया का हिस्सा भी रहा हूँ इसलिए विकास के नाम पर प्रकृति और पर्यावरण को पहुँचने वाले आघात से भी परिचित हूँ। ऐसा ही एक अनुभव आज यहाँ साझा करता हूँ। 1980-95 के दौरान हिमाचल प्रदेश में नाथपा झाखड़ी हाईड्रो पावर प्रोजेक्ट निमार्णाधीन था। इसके लिए प्राकृतिक रूप से अपने मार्ग पर बहने वाली सतलुज नदी की दिशा अस्थायी रूप से बदलनी थी जिसके लिए विभिन्न सुरंगें बनाई जा रही थीं। यह सुरंगें महानगरीय मेट्रो की तरह आॅगर मशीन से बनने वाली सुरंगें नहीं होतीं।

यहां मिट्टी के नहीं बल्कि कठोर से कठोर किस्म के पत्थरों के पहाड़ों में सुरंग बनाई जाती है। इसके लिए पत्थर के इन पहाड़ों के गर्भ में 15-20 फीट के इस्पात के कई रॉड हाइड्रोलिक ड्रिल द्वारा एक साथ अर्धाकार क्षेत्र में पहाड़ की छाती में डाल दिये जाते हैं। फिर इन्हें बाहर निकाल कर इनके द्वारा खाली की गयी जगहों में विस्फोटक भर दिया जाता है। उसके बाद सभी रॉड के विफोटक भरे सुराखों को तारों से एक दूसरे से जोड़ दिया जाता है। उसके बाद निमार्णाधीन सुरंग में मौजूद सभी कर्मर्चारियों को सुरंग से बाहर आने का निर्देश दिया जाता है।

उधर इसी निमार्णाधीन सुरंग के ऊपरी भाग से गुजरने वाले मार्ग पर भी यातायात बंद कर दिया जाता है। सब कुछ सुनिश्चित करने के बाद रिमोट कंट्रोल द्वारा अधिकृत अधिकारी ब्लास्ट कर देता है। आप विश्वास कीजिये जिस समय यह विस्फोट होता है उस समय कई किलोमीटर के इलाके में पहाड़ भूकंप की तरह कांपते हैं। ब्लास्ट की आवाज ऐसे प्रतीत होती है जैसे आसमान में भयंकर बम ब्लास्ट हुआ हो। कई सेकेंड तक ध्वनि-प्रतिध्वनि वातावरण में गूंजती रहती है। अनगिनत विस्फोटों का सामना करने वाले इसी हिमाचल प्रदेश ने पिछले दिनों वर्षा ऋतु में तबाही के वह दृश्य देखे जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।

जगह जगह भूस्खलन,बाढ़,बादल फटने, पुल टूटने, इमारतों के बहने व ढहने तथा जंगल के जंगल बह जाने जैसे दृश्य देखे गये। उत्तराखंड में भी जोशीमठ व कई अन्य इलाकों में न केवल भूस्खलन और बाढ़ आदि के मंजर देखे गये बल्कि पहाड़ों के खिसकने उनमें दरार पड़ने की भी खबरें आईं। सैकड़ों लोगों के घरों में बड़ी बड़ी दरारें पड़ गयीं। सच तो यह है कि खास तौर पर पहाड़ों पर होने वाला ‘विध्वंसात्मक विकास’, विकास नहीं बल्कि यह प्रकृति के विनाश को न्यौता दिया जाना है।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।) तनवीर जाफरी

- Advertisement -
RELATED ARTICLES
Desh Rojana News

Most Popular

Must Read

Recent Comments