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Editorial: फाइव जी के दौर में भी नेटवर्क की सुविधा से वंचित गांव

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देश रोज़ाना: भारत दुनिया के उन चंद देशों में शामिल होने वाला है जो जल्द ही 5जी नेटवर्क को अपनाने वाले हैं। दरअसल न केवल अर्थव्यवस्था बल्कि विज्ञान और तकनीक के मामले में भी भारत दुनिया का सिरमौर बनता जा रहा है। एक ओर जहां जमीन से ऊपर चांद और सूरज को छू रहा है तो वहीं धरती पर टेक्नोलॉजी के मामले में इसने अपने झंडे गाड़ दिए हैं। हालांकि एक ओर जहां भारत का शहर तेजी से विकसित हो रहा है, तो वहीं इसका दूरदराज ग्रामीण इलाका आज भी विकास की लौ से बहुत दूर है। भले ही आज भारत फास्ट नेटवर्क उपलब्ध कराने वाले दुनिया के गिने चुने देशों में शामिल है, लेकिन देश के कई ऐसे ग्रामीण क्षेत्र हैं जहां लोगों को मामूली नेटवर्क तक उपलब्ध नहीं हो पाता है। उन्हें इंटरनेट स्पीड मिलना तो दूर की बात है, अपनों से फोन पर भी बात करने के लिए गांव से कई किमी दूर चलकर नेटवर्क एरिया में आना पड़ता है।

उत्तराखंड के कई दूरदराज ग्रामीण क्षेत्रों की आज यही स्थिति है, जहां सड़क और नेटवर्क का पहुंचना काफी मुश्किल और दुर्गम है। इन्हीं में एक बागेश्वर जिला स्थित कपकोट ब्लॉक का जगथाना गांव भी है। ब्लॉक कपकोट से करीब 20 किमी दूर इस गांव में नेटवर्क की सुविधा रास्तों से भी कहीं अधिक दुर्गम है। आधुनिक युग नेटवर्क का युग है। अब हर चीज इंटरनेट पर उपलब्ध है। लेकिन जगथाना गांव के लोगों के लिए इसी इंटरनेट के लिए नेटवर्क प्राप्त करना दुर्लभ है। गांव के लोगों को अपने परिजनों से बात करनी हो, युवाओं को रोजगार से संबंधित जानकारियां प्राप्त करनी हो, छात्र-छात्राओं को शिक्षा से संबंधित पठन पाठन सर्च करनी हो अथवा किसी जरूरतमंद को सरकार की योजनाओं का लाभ उठाने के लिए सूचनाएं एकत्र करनी हो, सभी के लिए इंटरनेट तक सुलभ पहुंच जरूरी है। जिसे चलाने के लिए नेटवर्क की सुविधा का होना आवश्यक है। जिसका इस गांव में नितांत अभाव है।

नेटवर्क की कमी के कारण इंटरनेट की सुविधा नहीं होने का खामियाजा स्कूली छात्र/छात्राओं को भी भुगतना पड़ता है। इस संबंध में गांव की एक 17 वर्षीय किशोरी दिशा दानू कहती है कि कई बार शिक्षक स्कूल खत्म होने के बाद व्हाट्सएप पर होमवर्क भेजते हैं, जिसे नेटवर्क नहीं होने के कारण हम देख नहीं पाते हैं। जबकि अन्य छात्र/छात्राएं उसे पूरा करके लाते हैं। जिसकी वजह से हमें अगले दिन क्लास में शर्मिंदा होना पड़ता है। नेटवर्क की कमी से जहां युवा और विद्यार्थी परेशान हैं तो वहीं गांव के आम लोग भी इस सुविधा की कमी से परेशान हाल हैं।

52 वर्षीय केदार दानू कहते हैं कि सरकार लोगों के दु:ख दर्द को दूर करने की बात तो बहुत करती हैं लेकिन शायद नेटवर्क नहीं होने के कारण सरकार के कानों तक हमारी तकलीफ नहीं पहुंच रही है। अगर गांव में नेटवर्क समस्या दूर कर दी जाए तो गांववालों की आधी तकलीफ दूर हो जाएगी। नेटवर्क समस्या के कारण गांव में एम्बुलेंस की सुविधा नहीं पहुंच पाती है। प्रसव या अन्य इमरजेंसी के लिए सरकार ने फ्री एम्बुलेंस सर्विस मुहैया करवाया है। जिसके लिए एम्बुलेंस को केवल एक कॉल करने की जरूरत है, लेकिन यह जरूरत उस वक़्त पूरी हो सकती है जब एम्बुलेंस वालों से बात करने के लिए नेटवर्क की सुविधा उपलब्ध हो।

बहरहाल, देखा जाए तो आज नेटवर्क हर किसी की जरूरत बन चुकी है। यह हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है। इतना ही नहीं, यह विकास का भी एक अहम पैमाना माना जाता है। ऐसी परिस्थिति में भी जगथाना और उसके गांवों में नेटवर्क का न होना कल्पना से परे लगता है। विकास के असमान वितरण के कारण जगथाना जैसे देश के दूरदराज गांव पिछड़ते जा रहे हैं। अगर देश को विकसित बनाना है तो हमें विकास के सभी पहलुओं और दूर दराज के गांवों को साथ लेकर चलना होगा। ऐसे में जरूरी है कि जगथाना जैसे देश के दूरदराज गांव को नेटवर्क जैसी जरूरतों से पूर्ण किया जाए, ताकि सभी नागरिक संवाद के एक मजबूत डोर में बंध सकें। (चरखा)
(यह लेखिका के निजी विचार हैं।)

सुनीता जोशी

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