30 जनवरी 1948 को नई दिल्ली स्थित बिरला भवन में शाम की प्रार्थना के लिए जाते समय जब नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी को तीन गोलियां मारी थीं, उनके मुख से निकलने वाला अंतिम शब्द थे ‘हे राम!’ उस दिन 78 साल के जर्जर शरीर वाले बूढ़े महात्मा गांधी की भौतिक रूप से हत्या जरूर हुई थी, लेकिन उस घटना ने गांधी को अमर कर दिया। उनके गांधीवाद को विश्व में प्रतिष्ठित कर दिया। वैसे तो पूरी दुनिया में गांधी का नाम पहले से ही बड़े सम्मान के साथ लिया जाता था, उनकी हत्या ने उन्हें एक वैश्विक ब्रांड बना दिया। गांधी और गांधीवाद के तमाम अंतर्विरोधों के बावजूद भारत गांधी के देश के रूप में जाना जाता है। गांधी आज भी पहले की तरह ब्रांड हैं।
देश-विदेश में जब भी भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री जाते हैं, तो उन्हें अगर वहां गांधी की प्रतिमा लगी है, तो उसके सामने सिर झुकाना ही पड़ता है। दल और दलगत विचार भले ही गांधीवाद से भिन्न हो, लेकिन पूरी दुनिया में मान्यता गांधी को ही मिली है। इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता है। अपनी मौत के 74 साल बाद भी महात्मा गांधी आज भी प्रासंगिक माने जाते हैं। आज जिस तरह पूरी दुनिया में हिंसा, प्रतिशोध और युुद्ध जैसी स्थितियां बन रही हैं, उसमें लोग मानते हैं कि गांधी की अहिंसा ही इन परिस्थितियों को बदल सकती है। अहिंसावादी सिद्धांतों के लिए पूरी दुनिया में महात्मा बुद्ध, महावीर जैन और मोहनदास करमचंद गांधी ही विख्यात हैं। महात्मा बुद्ध और गांधी की अहिंसा में एक मौलिक अंतर था। महात्मा बुद्ध मानते थे कि शासक हिंसा न करे। प्रजा तो हिंसा करती ही नहीं है।
यही वजह है कि महात्मा बुद्ध और उनके बाद के शिष्यों ने राजाओं को अहिंसक बनाने का प्रयास किया। लेकिन गांधी की अहिंसा रूस के प्रसिद्ध लेखक लियो टॉलस्टाय के विश्व प्रसिद्ध उपन्यास वार एंड पीस की विचारधारा से प्रेरित है जिसके अनुसार शासक हिंसा करता है तो करे, लेकिन प्रजा को हिंसा नहीं करनी चाहिए। हम गांधी और गांधीवाद से असहमत हो सकते हैं, लेकिन गांधी के चरित्र से असहमत नहीं हो सकते हैं। गांधी जिस बात को सच मानते थे, उस पर अडिग रहते थे। गांधी कोई गरीब या मध्यम आय वर्ग वाले परिवार से नहीं थे।
लंदन से बैरिस्टर की डिग्री लेने वाला व्यक्ति अमीर घराने का ही हो सकता था। प्रारंभिक जीवन में वह अंग्रेजों की तरह सूट-बूट और टाई पहनते थे। लेकिन जब उन्होंने एक परिवार की सास-बहू को एक ही साड़ी में गुजारा करते देखा, तो उन्हें अपने सूट-बूट पहनने पर शर्म आई। बस, उसी दिन से मोहनदास करमचंद गांधी ने सब कुछ उतारकर एक मारकीन की धोती पहनने का जो संकल्प लिया, उसे आजीवन निभाया। प्रसिद्ध लेखक हंस राज रहबर ने ‘गांधी बेनकाब’ नामक पुस्तक में लिखा है कि जब गांधी लंदन में थे, तो वे ईसाई हो जाना चाहते थे, लेकिन भगवत गीता पर पूर्ण आस्था रखने वाले मोहनदास करमचंद गांधी ऐसा नहीं कर पाए। इतने साल बाद भी अगर गांधी का नाम जिंदा है, तो वह सिर्फ इसलिए क्योंकि गांधी एक विचार है। गांधी का भौतिक शरीर तो बहुत पहले नष्ट हो गया, लेकिन विचार अभी तक जिंदा हैै।
-संजय मग्गू