संजय मग्गू
आखिरकार सैनी सरकार को प्रदूषण के मामले में सख्त होना ही पड़ा। वैसे सरकार पहले सख्त कदम उठाने के मूड में नहीं थी। यही वजह है कि जब पराली जलाने पर किसानों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने और दो सीजन तक मंडियों में फसल न बेचने पर लगने वाले प्रतिबंध की बात उठी थी, तो सीएम नायब सैनी ने तत्काल प्रतिक्रिया व्यक्त की थी कि ऐसा नहीं होगा। किसान समझदार हैं। लेकिन जब बात प्रदेश के करोड़ों लोगों के स्वास्थ्य की हो, तो कोई कब तक अनदेखी कर सकता है। आखिरकार मजबूर होकर सरकार को कठोर कदम उठाना पड़ा। आज ही कृषि विभाग ने 24 अधिकारियों और कर्मचारियों को पराली जलाने से किसानों को नहीं रोक पाने और लापरवाही बरतने के आरोप में सस्पेंड कर दिया है। सोमवार को भी पांच किसानों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया। यदि पराली और सड़कों या घरों में कूड़ा-करकट जलाना नहीं रुका, तो आगे भी लोगों के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए जाएंगे। प्रदेश के करोड़ों लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने की इजाजत कोई कैसे दे सकता है। पिछले काफी दिनों से प्रदेश के सरकारी और गैर सरकारी अस्पतालों में सांस से जुड़े रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है। बूढ़े, बच्चे और महिलाएं अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, एलर्जी और आंखों और त्वचा से जुड़े रोगों का शिकार हो रहे हैं। इसका कारण सिर्फ और सिर्फ प्रदूषण है। बच्चे और बूढ़े खासतौर पर इससे प्रभावित हो रहे हैं। उनके फेफड़ों में सूजन आ रही है, उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो रही है। हर साल अक्टूबर और नवंबर महीने में ऐसे रोगियों की संख्या काफी बढ़ जाती है। वायु में मौजूद सूक्ष्म कण और धुआं फेफड़ों में प्रवेश करके अस्थमा, ब्रोंकाइटिस जैसे रोगों को जन्म दे रहे हैं। फरीदाबाद, गुरुग्राम, पलवल, रोहतक, सिरसा जैसे तमाम शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक पिछले काफी दिनों से तीन सौ से पार जा रहा है। कभी-कभी किसी कारण से यह सूचकांक घटता है, तो लोगों को लगता है कि जैसे सांस लेने में दिक्कत थोड़ी कम हो रही है। अगर यह कहा जाए कि हरियाणा में प्रदूषण का कारण सिर्फ पराली जलाना है, तो यह भी सही नहीं होगा। सड़कों पर बने गड्ढों की वजह से उड़ती धूल, सड़कों के किनारे जलाया जाता कूड़ा, मकान निर्माण के लिए मंगाए गए बालू, सीमेंट आदि के कण हवा के साथ उड़कर वातावरण को प्रदूषित कर रहे हैं। ऊपर से प्रदेश में बेतहाशा बढ़ती गाड़ियां सबसे ज्यादा वातावरण को प्रदूषित कर रही हैं। लोग सौ कदम पैदल चलने की जगह डीजल या पेट्रोल चालित वाहन से जाना पसंद कर रहे हैं। सड़कों पर फर्राटा भरती गाड़ियों ने सबसे ज्यादा वातावरण को प्रदूषित किया है। यदि लोग सार्वजनिक वाहनों का उपयोग करें, तो काफी हद तक प्रदूषण पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
संजय मग्गू